वैसे तो ओशो समस्त संसार के थे, लेकिन मध्य प्रदेश में जन्मे। उनके जन्म स्थल के आसपास के निवासी देश के वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय सतीश पेडणेकर पहले ‘पांचजन्य’ व बाद में ‘जनसत्ता’ के वरिष्ठ पदों पर रहे। ओशो का आज 33वां निर्वाण दिवस है, इसी दिवस पर स्वर्गीय पेडणेकर का 6 साल पहले, 19 जनवरी 2018 को लिखा लेख श्रद्धांजलि स्वरूप सादर – साभार यथारूप प्रस्तुत-
Osho: ओशो को संसार जानता भी है और नहीं भी जानता। जो लोग जानते हैं, वे उन्हें कितना जानते हैं, यह वे नहीं जानते। और जो नहीं जानते, वे उन्हें क्यों नहीं जानना चाहते, उसका उनके पास कोई कारण नहीं है। कहते हैं कि ओशो को कोई जान ही नहीं सकता, उनको तो समझना पड़ता है। जो ओशो को समझ गया, उसने जीवन समझ लिया और जीवन संवार लिया। इसीलिए, ओशो को जानने वालों और न जानने वालों की तरफ से अक्सर उनके बारे में बहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और कुछ कपोल कल्पित और कुछ लगभग अविश्वसनीय भी। एक ही जनम में कई कई जन्मों के सागर में गोते लगाने वाले ओशो जीते जी, मनुष्य से मन के स्वामी और आचार्य से भगवान हो जाने अकेले प्राणी रहे।
जीवन, लोक, परलोक, स्वर्ग, नर्क, संगीत, नृत्य, विज्ञान, पर्यावरण, भक्ति, ध्यान, धर्म, समाज, संस्कृति, और भी ना जाने किन किन विषयों और विविधा विधाओं पर अपंरापार ज्ञान रखने वाले ओशो ने भारत से ले कर समस्त संसार को जीवन का सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो कुछ को अपना प्रकर विरोधी भी बनाया। सही मायने में देखें, तो मनुष्य और समाज के समस्त जीवन के हर भाग, विभाग, संभाग और अनुभाग का शायद ही कोई रंग या फलसफा होगा जो ओशो के प्रवचनों में न मिलता हो। वे दिव्य थे, तेयोमयी थे, तपस्वी थे और ऋषि सरीखे थे, क्योंकि वे जीवन के संपूर्ण सत्य को जानते थे, समझते थे और समझाते भी थे। वह सत्य, जिसका एक रंच मात्र अंश तक आप और हम जैसे करोड़ों लोग पूरी उम्र गुजार देने के बावजूद नहीं जान पाते।
ओशो जीवन का रहस्य समझाते थे। लेकिन संसार के ज्यादातर लोग, केवल इस धरती पर जन्म लेने और मर जाने के बीच के कालखंड और उस कालखंड में निभाए रिश्तों को ही जीवन मान लेते हैं। ऐसे ज्यादातर लोगों को लिए ओशो एक रहस्य थे, और वे ही लोग ओशो को रहस्यमयी मानकर कहानियां बताते हैं कि ओशो का जीवन रहस्यमयी था। लेकिन, असल में तो उनका जीवन जितना रहस्यमयी था, उतनी ही उनकी मौत भी रहस्यमयी जरूर रही। आज उनकी मृत्यु को 28 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1990 में आज ही के दिन, 19 जनवरी को वे संसार सागर को पार करके आगे बढ़ गए थे। वे हम मनुष्यों की तरह मरे नहीं थे, निर्वाण को प्राप्त हुए थे। उनकी समधि पर लिखा है – ‘ओशो, जिनका न कभी जन्म हुआ, न कभी मृत्यु। वे इस पृथ्वी गृह पर आए और चले गए।’ओशो के कुछ अल्पज्ञाताओं का कहना है कि हैं यह जो लिखा है, वह खुद ओशो ने अपने मृत्यु से पूर्व लिखा था, क्योंकि जीवन के बारे में कोई दूसरा कोई इतना उच्च कोटि का सूत्र सोच ही नहीं सकता।
अपनी पुस्तक ‘ग्लिप्सेंस ऑफ माई गोल्डन चाइल्डहुड’ में ओशो खुद लिखते हैं कि लिखा वे उसी मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में 11 दिसंबर, 1931 को जन्मे, जहां मेरा भी जन्म हुआ। नाम उनका चंद्रमोहन जैन था, जबलपुर में पढ़े और दर्शन में रुचि पैदा हुई, तो वे रजनीश बन गए, बाद में जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर, फिर अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देते हुए आचार्य रजनीश से अंत में ओशो बन गए। उन्होंने पुणे में रजनीश धाम खोला जो बाद में रजनीश आश्रम बना और बाद में ओशो कम्यून। सन 1981 से 1984 के बीत वे अमेरिका के ओरोगॉन में रहे, जहां चंद दिनों में ही 65 हजार एकड़ जमीन पर संसार का सबसे बड़ा आश्रम स्थापित करने का पराक्रम करनेवाले भी ओशो ही थे। अपने देश में ओशो की उपस्थिति और उनसे जुड़ने वाले लोगों की बेतहाशा बढ़ती संख्या को अमेरिका ने अपने यहां के सामाजिक जीवन में भूचाल मान लिया, तो असामान्य परिस्थितियों में ओशो को भारत लौटना पड़ा और पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में ही रहे, जहां 19 जनवरी, 1990 को वे संसार से निकल गए। हां, संसार से निकल जाने से पहले उन्हें पता नहीं था कि वे देह त्याग रहे हैं, लेकिन उनके कुछ शिष्यों को यह जरूर पता था।
ओशो की मृत्यु भी रहस्य ही है। कोई नहीं जानता कि वे मरे या मार दिए गए। लेकिन इसका खुलासा करते हुए उनके डॉक्टर गोकुल गोकाणी ने अपने हलफ़नामे में यह कहकर रहस्य सा पैदा कर दिया है कि ओशो के शिष्यों ने उन्हें डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह दिल का दौरा लिखने के लिए दबाव डाला था। सही हैं कि उनका जीवन जितना रहस्यमयी था, संसार से जाना भी रहस्यमयी रहा। मगर, ओशो का जीवन महज यही नहीं था। वे संबुद्ध थे, जीते जी बुद्ध्त्व को प्राप्त एक प्रयोगधर्मी प्राण, महाप्राण ऐसा प्राण कि लगभग निष्प्राण से होकर भी जीवन को जीने की कला जानने वाले महापुरुष। वे मीरा, सूरदास, रैदास, महावीर, बुद्ध, कृष्ण, राम, आदि सबका सार थे। वे जीवन सिखाते थे, जीवन का जीना नहीं जीतना सिखाते थे।
ओशो प्रकृति पसंद थे। प्रकृति उन्हें लुभाती थी, इसी वजह से जब अमेरिका से लौटे, तो हिमाचल प्रदेश के मनाली में व्यास नदी के किनारे बसे बेहद खूबसूरत होटल स्पेन रिसॉर्ट में लंबे वक्त तक रहे। वहीं पर राजस्थान से ओशो से मिलने मनाली पहुंचे नन्हे से बालक निरंजन परिहार से अपनी पहली मुलाकात हुई। यह बालक बाद में देश के मीडिया में जाना पहचाना चेहरा बना और हमारे पत्रकार साथियों में पांच सितारा वैभवशाली जीवन जीने वाला सबसे अमीर पत्रकार भी। तब, बच्चा सा निरंजन परिहार मनाली केवल इसलिए पहुंचा था, क्योंकि ओशो कभी उनके गांव माउंट आबू गए थे, रहे थे, प्रवचन दिए और शिविर भी किए थे। परिहार ने शायद केवल यह सब सुना था, इसीलिए वो ओशो से मिलने पहुंचा था। मिला, तो उनकी चरण रज को माथे पर लगाया और ध्यान मग्न होकर निकल लिय। मेरे मन मस्तिष्क पर आज भी वह उस मासूम का निष्पाप दृश्य अटल अंकित है। जाने ऐसे कितने ही करोडों लोगों को जीवन के अलग अलग सूत्र थमा कर ओशो अचानक से अमीर कर गए। ओशो कहते थे कि अमीरी धन की तो होती ही नहीं, धन तो गुलामी देता है, बंधक बनाता है। अमीरी तो वह होती है, तो जीवन में फकीरी लाती है। फकीर को जीवन में मृत्यु का भय नहीं होता। ऐसी ही बातों से ओशो जीवन को जीने की प्यास जगाते थे, जीवन को जीतने की कला सिखाते थे और उस जीते हुए जीवन को जगत के सत्य से सजाते थे।
ओशो कहते थे कि धर्म जीवन का मर्म सिखाता है, और मानव होना ही सबसे बड़ा धर्म है। वे धर्म के ठेकेदारों और धर्म की जड़ता को प्रुत हो चुकी परंपराओं पर तीखी टिप्पणियां करते थे, और कहते थे कि धर्म तो सहिष्णुता सिखाता है, और यह तथ्य भी कि धर्म अपने पर की गयी समस्त टिप्पणियों को सहर्ष स्वीकारता है। किंतु अगर कोई धर्म अगर अपने विश्लेषण का बुरा मानता हो तो उस धर्म को अपने रास्ते की खोज करने के लिए छोड़ देना चाहिए। वे जड़ता से मुक्ति को जीवन की जीत का माध्यम बताते थे, कहते थे कि जो चीज सबसे ज्यादा सता रही हो, उसको इतना जी लो कि उससे उबर जाओ। सेक्स से उबर जाने को भी वे इसी तरह से परिभाषित करते थे, तो सामान्य लोगों ने उनको विवादास्पद बना दिया। वे बहद महंगी घड़ियां पहनते रहे, संसार की सर्वाधिक महंगी कारों रोल्स रॉयस आदि में चलते रहे, प्राइवेट हवाई जहाज में उड़ते थे और डिजाइनर कपड़ों की वजह से वे हमेशा चर्चा में भी रहे, और विवादास्पद भी। इन्हीं कुछ वजहों के अलावा कुछ खास वजहों से ओशो का अमरीका प्रवास भी बेहद विवादास्पद रहा। ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। दरअसल, विरोध, विरोधी और विरोधाभास सदा उनके जीवन भर साथ चलते रहे और संसार से विदा हो जाने के बाद भी अनवरत जारी है। कुछ लोग होते ही ऐसे हैं, कालजयी। कालजयी अर्थात समय से परे, जिनका न होना भी उनके होने से ज्यादा अहमियत भरा होता है। ओशो ऐसे ही थे, होते हुए और न होते हुए भी अहम अहमियत से ओतप्रोत।
-सतीश पेडणेकर (वरिष्ठ पत्रकार)