साक्षी त्रिपाठी
चुनावी मौसम है और अपनी अपनी पार्टियों के उम्मीदवारों प्रचार के लिए सिनेमा के सितारे मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। स्टार तो वे पहले से ही हैं, लेकिन पार्टियां उनको स्टार प्रचारक के रूप में पेश करने के लिए सूचियां बना रही हैं। हमने देखा है कि रूपहले पर्दे के अलबेले अंदाज के साथ बॉलीवुड की ग्लैमरस दुनिया के ये सितारे जब चुनावी सभाओं में जयकारों के जयनाद के बीच हिलते हाथों के अक्स के साथ उतरते हैं। वे मंच पर ऐसे डायलाग बोलते हैं कि जनता को लगता है कि आ गया उनका असली रहनुमा। मगर उन्हें यह नहीं पता कि रुपहले पर्दे के ये डायलाग बोलने वाले सपनों के सौदागर उनकी भावनाओं से सौदा कर रफूचक्कर हो जाएंगे। यानी जो दिखता है, वो है नहीं, जो है वो दिखता नहीं, वाली बात इन सितारों के साथ है। राजनीतिक पार्टियां इस सत्य को जानती हैं और मानती भी हैं। फिर भी उनको चुनावी मैदान में उतारती है, भीड़ जुटाती है और लोगों को लुभाती है। जनता जब अपना नेता चुनती है तो अक्सर हकीकत से ज्यादा भावनाओं में बह कर अपने फैसले करती है और भावनाओं पर राज करने वाले सिने जगत के ये सितारे तो वैसे भी माहिर हैं अपने इसी हुनर का फायदा उठाने में। ज्यादातर सितारे या तो भाड़े आते हैं या या फिर पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर। आज की राजनीति में हेमामालिनी, जया बच्चन व राज बब्बर से लेकर सनी देओल और शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर गोविंदा, मनोज तिवारी, किरण खेर, और ऐसे ही कुछ और सितारे संसद से सभाओं तक में धूम मचाते देखे गए हैं। स्मृति इरानी तो स्वयं मंत्री के अवतार में सरकार में ही मौजूद हैं, हालांकि वे शुद्ध राजनेता बन चुकी हैं, लेकिन आखिर हैं, तो वे भी छोटे परदे की सुपर स्टार। चुनावी मौसम में सितारों की सभाओं करवाने की फेहरिस्त बन लही है। सिल्वर स्क्रीन से लोकतंत्र के दिल कहे जानेवाले संसद भवन तक का सफर अपनी फिल्मी जुबान के भरोसे तय करनेवाले सितारे अक्सर संसद के सत्रों में भले ही गैरहाजिर रहें, लेकिन चुनाव में वे जरूर अवतरित हो जाते हैं। राजस्थान के पिछले विधानसबा चुनाव में राज बब्बर ने कांग्रेस के समर्थन में कई सभाएं की और कई जगहों पर लोगों को लुभाने में कामयाब भी रहे। हम देखते रहे हैं कि संसद का रास्ता भूलकर सितारे हजारों लोगों की भीड़ के आगे बने मंच पर कैमरों के सामने अपने और सामने बैठे लोगों के बीच भावुक रिश्तों की दुहाई देकर अपनी पार्टी के उम्मीदवार को जिताने की अपील करते हुए जनता का सीना छलनी करते रहे हैं। उनके सम्मोहित करने वाले डायलॉग सुनकर जनता यह भूल जाती है कि सिनेमा के परदे पर आखरी बार कब देखा था। परदे के ये हीरो चुनाव प्रचार में भी हीरो तो लगते हं लेकिन ज्यादातर का ग्लैमर बीत जाने की वजह से ये इस बार जीरो साबित हो सकते हैं।