निरंजन परिहार
लंबे इंतजार के बाद आखिर राजस्थान बीजेपी की नई कार्यकारिणी घोषित कर हो गई है। चुनाव सर पर देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष पद पर सांसद सीपी जोशी की नियुक्ति 23 मार्च को हुई थी। लेकिन हर मामले में तेजतर्रार तेवर की तात्कालिकता दिखाने और संगठन को ही सर्वोपरि माननेवाली पार्टी में संगठन का निर्माण ही लगभग साढ़े तीन महीने ततक लटकाया जाए, इसे नेतृत्व की उलझन और असमंजस माना जाए, या कुछ और, यह आप तय करें। लेकिन बीजेपी के नए पदाधिकारियों में किसी भी बड़े नेता के ज्यादा समर्थकों को ज्यादा महत्व मिला हो, ऐसा कतई नहीं लगता। इसके साथ ही नई सूची में जातिगत, सामाजिक व क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कोशिश भी स्पष्ट है, मगर मुस्लिम चेहरा एक भी न होने से संदेश साफ है कि सत्ता व संगठन में मुसलमानों को दरकिनार रखे जाने पर बीजेपी अटल है। प्रदेश अध्यक्ष जोशी की टीम में विधायक भी कोई नहीं है, तथा कई सारे वे चेहरे हैं, जो किसी भी विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारी के मुकाबले संगठन का काम करने में ज्यादा सक्रिय हैं। इसके पीछे सीधा गणित यही माना जा रहा है कि तीन महीने बाद शुरू होनेवाला राजस्थान विधानसभा का चुनाव तो बीजेपी नेतृत्व जीता हुए ही मानकर चल रहा है, मगर असली चुनाव लोकसभा का होगा, जो अगले साल अप्रेल में होना है। इसीलिए बीजेपी के नवनियुक्त कुल 29 प्रदेश पदाधिकारियों में सांसदों के चेहरे तो ज्यादा चमक रहे हैं, लेकिन कोई भी बहुत प्रभावशाली, ज्यादा ताकतवर और मजबूत नेता इस कार्यकारिणी में नहीं है। केवल सीपी जोशी ही सबसे ताकतवर दिखते हैं। तो सवाल यह है कि क्या सभी ताकतवर नेताओं को विधानसभा चुनाव की तैयारी के निर्देश दे दिए गए हैं?