Ambedkar and Congress: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, उनके नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भले ही चीख चीख कर कह रहे हैं कि डॉ भीमराव आंबेडकर का कांग्रेस बहुत सम्मान करती है। लेकिन जैसा कि लोग मानते हैं और तथ्य भी बताते हैं कि कांग्रेस की वजह से आंबेडकर को दो बार लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। भारत की आज़ादी के चार साल बाद पहला लोकसभा चुनाव 1951 में शुरू हुआ और 1952 में खत्म हुआ। डॉ भीमराव आंबेडकर लोकसभा चुनाव कांग्रेस के सामने हार गए थे। दो साल बाद आंबेडकर ने उपचुनाव लड़ा तो कांग्रेस उम्मीदवार ने फिर उन्हें हरा दिया। आंबेडकर को सदमा लगा और दो साल बाद 1956 में उनकी मृत्यु हो गई। तभी से लगातार यह आरोप लगता रहा है कि कांग्रेस ने जान बूझकर आंबेडकर को हराया।
समाजवादियों से आंबेडकर का गठबंधन, तो कांग्रेस नाराज
बात सन 1951 की है, मुंबई में उन दिनों कांग्रेस की कमान उस दौर के दमदार नेता एसके पाटिल के हाथ में थी। मुंबई और कांग्रेस, दोनों में पाटिल का जबरदस्त दबदबा था। आचार्य अत्रे की मराठी भाषा में प्रकाशित पुस्तक ‘कन्हेचें पाणी’ में लिखा गया हैं कि – आंबेडकर की पार्टी और समाजवादियों का गठंबधन हुआ तो एसके पाटिल इससे नाराज़ हो गए और उन्होंने नारायण काजरोलकर को बतौर कांग्रेस प्रत्याशी आंबेडकर के ख़िलाफ़ उतार दिया था। हालांकि पाटिल ने जब घोषणा की थी, तब आंबेडकर मनोनीत नेहरू कैबिनेट में मंत्री थे। आंबेडकर समर्थक मानते हैं कि देश के इस पहले आम चुनाव में कांग्रेस ने पहले ही कहा था कि आंबेडकर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ेंगे, तो कांग्रेस उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार नहीं उतारेगी, फिर भी आरक्षित सीट पर उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारा गया। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष एसके पाटिल समर्थकों का कहना था कि आंबेडकर की पार्टी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का समाजवादियों से गठंबधन ही गलत था, तो एसके पाटिल की नाराज़गी वाजिब थी।
कांग्रेस ने धोखे से हराया था आंबेडकर को
दरअसल, डॉ भीमराव आंबेडकर तत्कालीन बॉम्बे प्रांत से अपनी पार्टी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवार के तौर पर तत्कालीन उत्तर बंबई के दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे थे। तो, वहां से कांग्रेस ने नारायण काजरोलकर को आंबेडकर के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा था। चुनाव हुए और उसके नतीजों ने सारे देश को चौंका दिया, क्योंकि इस चुनाव में काजरोलकर को 1,38,137 वोट मिले थे, जबकि आंबेडकर को 1,23,576 वोट। कांग्रेस के काजरोलकर ने 14,561 वोट से आंबेडकर को हरा दिया। अपनी इस हार से आंबेडकर इतने सदमे में थे कि पहले से ही कई बीमारियों से जूझ रहे आंबेडकर का स्वास्थ्य भी इस दौरान ख़राब हो गया था। बाद में आंबेडकर बंबई से राज्यसभा में चले गए, लेकिन वे लोकसभा में जाना चाहते थे। तो, दो साल बाद ही भंडारा लोकसभा उपचुनाव में आंबेडकर खड़े हुए। मगर, कांग्रेस उम्मीदवार ने उन्हें वहां भी हरा दिया। उन्हें बड़ा सदमा लगा और दो साल बाद 1956 में उनकी मृत्यु हो गई।
अमित शाह के बयान से फिर चर्चा में आंबेडकर
संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान लगभग एक घंटे से ज़्यादा लंबे अपने भाषण में गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जब कहा कि – अभी एक फ़ैशन हो गया है। आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर। इतनी बार तो अगर भगवान का नाम लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। एक लंबे भाषण के इस छोटे से अंश को लेकर ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। कांग्रेस समेत विपक्षी दल विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अमित शाह के बयान पर कहा कि ये लोग संविधान और बाबा साहेब आंबेडकर की विचारधारा के ख़िलाफ़ हैं, तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा सेहब का सम्मान करते हैं, तो अमित शाह को मंत्रिमंडल से निकाल देना चाहिए। इसी पर, अमित शाह ने कहा – जिन्होंने जीवन भर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाईं, वे लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं।