Mewar: विरासत के विवाद और महलों व किलों की मालिकी की छीना झपटी के लिए चर्चित रहे मेवाड़ राजवंश में 493 साल बाद आज (25 नवंबर) को विश्वराज सिंह को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई। चित्तौड़ किले के फतह प्रकाश महल में विश्वराज सिंह मेवाड़ (VishwaRaj Singh Mewar) की खून से राजतिलक करके ये रस्म पूरी की गई। ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ किले के महल में 25 नवंबर 2024 को पारिवारिक विरोध, कानूनी अड़चनों, टांग खिंचाई और इसी तरह की कई अनहोनी और अप्रयाशित घटनाओं के बीच राजतिलक के दौरान मेवाड़ के नए महाराणा के तौर पर विश्वराज सिंह को 21 तोपों की सलामी दी गई, चित्तौड़ दुर्ग के सातों दरवाजों पर ढोल-नगाड़ों से मेहमानों का स्वागत हुआ, शहनाईयां बजीं, यज्ञ हुआ, आहुतियां दी गईं। लेकिन मेवाड़ राजवंश पर कानूनी कब्जा रखने वाले अरविंद सिंह मेवाड़ का कहना है कि हमारे पिता महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ ने मेरे भाई महेंद्र सिंह मेवाड़ को 40 साल पहले ही प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बेदखल करने की घोषणा कर दी थी, इसलिए इस रस्म के आयोजन को हमारी स्वीकारोक्ति नहीं है। और इस तरह से, रानी पद्मिनी के जौहर का साक्षी रहा चित्तौड़गढ़ दुर्ग 493 साल बाद एक बार फिर राजतिलक की रस्म का तो साक्षी बना ही, उससे जुड़े दुखद पारिवारिक विवाद का भी साक्षी बना। देर रात तक सिटी पैलेस के अंदर से बाहर खड़े लोगों पर पत्थरबाजी के जवाब में बाहर से भी पत्थरबाजी होने और कई लोगों के घायल होने की खबर भी आई। तो, विश्वराज सिंह को धूणी के दर्शन न करने देने के खिलाफ उनके आधी रात को महल की सड़क पर बैठकर धरना देने की घटना भी मेवाड़ राजघराने की भारी बदनामी का कारण बनी।
मेवाड़ राजवंश की 77वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी विश्वराज सिंह
वैसे तो सन 1947 में आजादी के साथ ही लोकतंत्र आने के बाद भारत की राजशाही प्रथा समाप्त हो गई, लेकिन आज भी राज परिवारों में प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, यह रस्म परंपरागत तरीकों से निभाई जाती है। भारतीय इतिहास में ‘हिंदुआ सूरज’ के नाम से दर्ज हिंदुत्व के पक्षधर महाराणा प्रताप का मेवाड़ राजवंश चार दशक से संपत्ति के विवाद की नई नई कहानियां कहता रहा है। 493 साल बाद 25 नवंबर 2024 को चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजतिलक की रस्म का साक्षी बना। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी रहे चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा विक्रमादित्य के राजतिलक का 1531 ईस्वी में अंतिम आयोजन हुआ था। इसके बाद मेवाड़ राजवंश के 77वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी विश्वराज सिंह ने महाराणा की उपाधि चित्तौड़ दुर्ग पर धारण की। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि एक गरिमामयी राजवंश में राजतिलक का परंपरागत अनावश्यक आयोजन विवाद की भेंट चढ़ गया। परिहार कहते हैं कि नए ‘महाराणा’ के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा है, एवं इसके बाद नए महाराणा को मेवाड़ के आराध्य एकलिंग जी मंदिर में भी दर्शन करने की परंपरा है। लेकिन दोनों पर मेवाड़ राजवंश के ट्रस्ट द्वारा रोक लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
मेवाड़ राजवंश में संपत्ति विवाद की अंतर्कथा
मेवाड़ राजपरिवार में संपत्ति विवाद पर राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का कहना है कि मोवाड़ घराना महाराणा प्रताप की गौरवशाली परंपरा का संवाहक रहा है। लेकिन जैसा कि आम तौर पर राजपरिवारों में होता रहा है, मोवाड़ का मामला भी लगभग 40 साल पुराना है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर परिहार कहते हैं कि सन 1930 से 1955 तक महाराणा रहे भूपाल सिंह व उनकी पत्नी वीरद कुंवर ने पुत्र नहीं होने की स्थिति में, परिवार के ही एक सदस्य प्रताप सिंह के बेटे भगवत सिंह को गोद लिया। भगवत सिंह के दो बेटे महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह के अलावा एक बेटी योगेश्वरी भी हैं। संपत्ति विवाद में महेंद्र सिंह मेवाड़ ने सन 1984 में अपने पिता महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के खिलाफ मुकदमा किया जिससे नाराज होकर उन्होंने अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया और महेंद्र सिंह मेवाड़ को प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बेदखल करने की घोषणा कर दी। तभी से मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के बीच सपंत्ति विवाद की कानूनी लड़ाई अब तक लगातार जारी है।
परिवार के लोगों द्वारा ही विरोध गरिमा के खिलाफ
चित्तौड़गढ़ में मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ का ‘राजतिलक’ कोई सहज और आसान आयोजन नहीं था। चित्तौड़ दुर्ग पर कार्यक्रम आयोजित करने पर राजवंश के एक परिवार ने पहले तो विरोध दर्ज किया, फिर उदयपुर के सिटी पैलेस में आने पर रोक लगाई गई, पूर्व राजघरानों से आमंत्रित सदस्यों, रिश्तेदारों और गणमान्य लोगों को प्रवेश के लिए प्रशासन के हस्तक्षेप के बावजूद मशक्कत करनी पड़ी। मेवाड़ घराने के विवाद पर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार एसपी मित्तल कहते हैं कि जिन महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर मेवाड़ का मान बढ़ाया, उनके वंशजों का संपत्ति के लिए लेकर लड़ना उचित नहीं हैं। उनका कहना है कि यह दुखद है कि राजघराने में पगड़ी दस्तूर जैसे शोक कार्यक्रम का भी परिवार के सदस्यों द्वारा ही विरोध किये जाने से राज परिवार की बदनामी हो रही है।
पगड़ी दस्तूर पर ऐतराज उचित नहीं – इतिहासकार
विश्वराज सिंह मेवाड़ नाथद्वारा से बीजेपी के विधायक है तथा उनकी पत्नी महिमासिंह मेवाड़ राजसमंद की सांसद। सपंत्तियों को लेकर मेवाड़ घराने की जंग के बीच इतिहासकार विक्रम सिंह टापरवाड़ा ने विश्वराज सिंह ने कहा कि पगड़ी दस्तूर एक सामाजिक परंपरा है। महाराणा भगवत सिंह के निधन के बाद विश्वराज सिंह के के पिता महेंद्र सिंह का भी ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते पगड़ी दस्तूर भव्य स्तर पर हुआ था। काफी बयानबाजी और विवादों के बाद 25 नवंबर 2024 को जो पगड़ी की रस्म और राजतिलक का आयोजन हुआ, उसमें मेवाड़ कुल की परंपरा के अनुसार सलूंबर के रावत देवव्रत सिंह ने विश्वराज सिंह के राजतिलक की परंपरा निभाई। इसके बाद उमराव, बत्तीसा, सरदार और सभी समाजों के प्रमुख लोगों ने नजराना किया। कुल देवी बाण माता के दर्शन किए। फिर वे उदयपुर के सिटी पैलेस में धूणी दर्शन करने भी गए, जहां पथराव हुआ औरनए ‘महाराणा’ के राजतिलक के बाद धूणी दर्शन की परंपरा व एकलिंग जी मंदिर के दर्शन से रोके जाने के खिलाफ आधी रात तक पुलिस के पहरे में सिटी पैलेस के दरवाजे खोलने की प्रयास चलता रहा।
-राकेश दुबे
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