RahulGandhi ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दूसरे चरण के दूसरे नाम से ‘भारत न्याय यात्रा’ पर राहुल गांधी निकल रहे हैं। लेकिन इससे क्या होगा, कोई नहीं जानता, वे खुद भी नहीं। इसी खास मौके पर आलोक तोमर का यह विशेष लेख है, जो उन्होंने मार्च 2008 में राहुल की राजनीतिक ताकतों, हरकतों और हसरतों पर लिखा था। आलोक तोमर को इस लोक से विदा हुए चौदह साल होने को हैं, लेकिन इस लेख का शब्द शब्द आज 15 साल बाद भी राहुल पर जस का तस लागू होता है। राहुल वैसे के वैसे हैं, कतई नहीं बदले, रत्ती भर भी नहीं। पढ़िये, वह विशेष लेख, जो अब कहीं और पढ़ने को शायद ही मिले… -संपादक
अब यह पता नहीं कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एमफिल की डिग्री कब ले ली? कम से कम लोक सभा की वेबसाइट पर उनके परिचय में यही लिखा है। जहां तक दिल्ली में जानकारी है राहुल सुरक्षा कारणों से शुरू में घर पर पढ़े, फिर कनाट प्लेस के पास सेंट कोलंबस स्कूल में भर्ती हो गए। इसके बाद पिताजी जहां पढ़े, उस दून स्कूल में देहरादून चले गए और फिर सूना गया कि दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कालेज में उन्हें खेल कोटे में दाखिला मिला है। उन्होंने पिस्तौल से निशानेबाजी का खिलाड़ी होने के प्रमाणपत्र दिए थे। यहां भी एक साल बाद उन्होंने कालेज छोड़ दिया और अगली जानकारी यह है कि उन्होंने अर्थशास्त्र विकास विषय में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कालेज में दाखिला लिया था, और तर्क यह है कि सुरक्षा के हास्यास्पद कारणों की वजह से उन्होंने वहां अपना नाम राहुल विंसी रख लिया था। इतालवी भाषा में विंसी का अर्थ दिग्विजयी होता है।
Rahul Gandhi के राजनीतिक सफर की शुरूआत अमेठी से
इन दिनों कांग्रेस (Congress) की ओर से दिग्विजय करने की राहुल गांधी की कोशिशें जोर-शोर से चल रही है। राहुल गांधी इसी साल 38 साल के हो जाएंगे और उम्र के हिसाब से अमेठी से सांसद बन के उन्होंने राजनीति की पहली मंजिल तो पार कर ली, लेकिन अमेठी से उनका जीतना कोई बड़ा चमत्कार नहीं है। राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने इस क्षेत्र को लगातार पनपाया है। उनके चुनाव की मैनेजर बड़ी बहन प्रियंका थी और मां का आशीर्वाद तो लाडले के साथ था ही। राहुल गांधी राजनीति में आते ही युवराज के तौर पर स्थापित कर दिये गए और अब तो यही उनका वैकल्पिक नाम बन गया है। राहुल गांधी ने सबसे पहले बूढ़े – पुराने कांग्रेसियों को ज्ञान दिया कि खादी पहनना कोई जरूरी नहीं है और शराब पीने से किसी का चरित्र गिर नहीं जाता। यह ज्ञान उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति में दिया था, जहां उनके इन शब्दों को खंडित करने का साहस किसी ने नहीं दिखाया था।
राजनीति को स्तब्ध करने वाले कारनामों के बादशाह
इसके बाद राहुल गांधी ने लगातार कांग्रेस को लज्जित और राजनीति को स्तब्ध करने वाले बयान एक के बाद एक दिए। उनके सलाहकारों और जनसंपर्क अधिकारियों की एक फौज बनाई गई। उनका समाज में उठना बैठना बनाया गया। उनके लिए नए-नए कार्यक्रम तैयार किए गए, लेकिन राहुल गांधी अपने आप को अपनी मम्मी के बेटे से आगे कुछ साबित नहीं कर पाए। शादी करने के मामले में भी वे अटल बिहारी वाजपेयी की लाइन पर चल रहे हैं, मगर कुंवारा रहने से अगर प्रधानमंत्री बनना तय होता तो कोई राजनेता मंडप में बैठता ही नहीं। राहुल गांधी ने पहले कुलियों के हक का मुद्दा उठाया और फिर कालाहांडी के आकालग्रस्त इलाकों के दौरे पर निकल गए। वहां जा कर उन्होंने अपने आप को भूख के खिलाफ लड़ने वाला योध्दा स्थापित किया। लेकिन कमाल की बात ये है कि वे पश्चिमी उड़ीसा का पूरा इलाका घूम लिए मगर कालाहांडी ही नहीं जा पाए। उड़ीसा में एनडीए यानि बीजू जनता दल की सरकार है, इसलिए उन्होंने जमकर राजनीतिक बयानबाजी की। आखिरकार वे वहां से वैसे ही निकल लिए, जैसे उनके पिता और उनकी दादी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके निकल लिए थे।
कांग्रेस का लोकतांत्रिक सौभाग्य या राजनीतिक मजबूरी
मम्मी के लाडले राहुल राजनीति के दायरों में अभी तक अपने आप को परावर्तित सत्ता का केंद्र नहीं बना सके हैं और एक तरह से यह लोकतांत्रिक सौभाग्य ही था। लेकिन राहुल के मामले में यह सौभाग्य एक तरह की मजबूरी साबित हो गया है। मां के पड़ोस में एक बड़े बंगले में वे रहते हैं और अब मुख्यमंत्रियों और सारे बड़े कांग्रेसी नेताओं को हुक्म दे दिया है कि 10 जनपथ के अलावा राहुल बाबा के बंगले पर भी हाजरी लगाया करें। ऐसे ही एक बड़े नेता ने एक दिलचस्प किस्सा यह सुनाया की राहुल गांधी ने विशेष तौर पर उन्हें फोन करके सारी मतदाता सूचियों और राजनीतिक होमवर्क के साथ बुलाया, लंबी बातचीत की और दो घंटा माथा खपाने के बाद उठते हुए अपने मेहमान से अपने राज्य में कांग्रेस को मजबूत बनाने का प्रवचन दिया। यहां तक तो ठीक था, मगर राहुल गांधी इतनी लंबी चर्चा के बाद भी राज्य का नाम भूल गये थे और गुजरात को मध्य प्रदेश समझने की भूल कर रहे थे। ऐसे ही हाल ही में उत्साही और लगातार चर्चित होते जा रहे राजीव शुक्ला ने उनकी दोस्ती शाहरूख खान (Shah Rukh Khan) से करवा दी और अपने आप को कांग्रेस का अमर सिंह सिध्द कर दिया। राहुल गांधी शायद शाहरूख खान की मौजूदगी में जितने सुखी नजर आते हैं, उतने अपने राजनीतिक साथियों की मौजूदगी में नजर नहीं आते।
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राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस दीर्घायु नहीं हो पाएगी
राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी हैं और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वंशज हैं। वे प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के पोते भी हैं और प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के बेटे भी। इतनी सारी विरासतों का बोझ संभालने की उनकी शक्ति है या नहीं इस पर हमारे देश का आने वाले दिनों का सौभाग्य या दुर्भाग्य टिका हुआ है। जहां तक खुद राहुल गांधी के भविषय का सवाल है तोसबसे पहले लोगों को इंतजार है कि वे अपनी शादी कब रचाते हैं? रिश्तों की कमी नहीं है, प्राथमिकता की बात है। राहुल गांधी भी ठीक उसी तरह बुरे आदमी नहीं हैं, जैसे उनके पिता राजीव गांधी नहीं थे। दिक्कत सिर्फ चुनाव की प्राथमिकता की है। इंदिरा गांधी ने अपने बड़े बेटे के स्वभाव को जानते हुए राजीव गांधी की बजाय संजय गांधी को राजनीति के लिए चुना था, लेकिन नियति ने संजय को जीवित ही नहीं रखा। इसीलिए राजीव को राजनीति में आना पड़ा और जब तक उन्हें लोकतांत्रिक होश आता तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। राहुल गांधी की दीर्धायु की सभी कामना करते होंगे लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस न तो अपने वर्तमान रूप में रह पाएगी और न दीर्घायु हो पाएगी। आप जानते हैं कि राहुल गांधी का संसदीय रिकार्ड कोई बहुत चमकदार नहीं है और नई पीढी के ज्यादातर सांसद उनसे ज्यादा बेहतर काम कर रहे हैं। इसके बावजूद अगर राहुल को शिखर पर रहना है तो अपने आप को शिखर पर होने की शक्ति अर्जित करने वाला बनाना पड़ेगा, जो कि फिलहाल तो यह होता दिखाई नहीं पड़ता।
(शब्दार्थ)