Rajasthan Elections : रेतीले राजस्थान की नई विधानसभा के लिए 25 नवंबर को मतदान हो गया है। प्रदेश में चुनाव आयोग के फाइनल आंकड़ों के मुताबिक कुल 75.45% मतदान हुआ, और खास बात यह है कि इस बार का मतदान सन 2018 में प्रदेश में हुए 74.06% मतदान से 0.74% ज्यादा है। पिछले चुनाव में माना जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार आ ही रही है, वह बदलाव को वोट था। प्रदेश की 200 में से एक, करणपुर विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी की मौत के कारण 199 सीटों पर मतदान हुआ है। मतदान का आंकड़ा देखकर कांग्रेस व बीजेपी दोनों में गजब उतासह है। दोनों के सरकार में आने के दावे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
बीजेपी (BJP) में कई लोगों का मानना है कि यह वसुंधरा राजे नहीं होंगी, कोई और ही होगा, तो कांग्रेस में भी कुछ लोग भले ही अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने को लेकर आशंकित हैं, मगर ज्यादातर लोगों की राय में कांग्रेस (Congress) की सरकार आई, तो मुख्यमंत्री गहलोत (Ashok Gehlot) ही होंगे, क्योंकि राजनीतिक रूप से वे ही सहज प्रभावी दावेदार हैं। बीजेपी (BJP) ने राजस्थान विधानसभा का चुनाव (Rajasthan Elections) सामूहिक नेतृत्व में लड़ा था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर में एक रैली में घोषणा की थी कि भाजपा के पास केवल एक चेहरा है और वह चेहरा कमल है, उसी पर चुनाव होगा। उधर, कांग्रेस (Congress) ने भी चुनाव से पहले किसी के फिर से मुख्यमंत्री बनने की घोषणा नहीं की थी। आज, मतदान किसी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए तो नहीं हो रहा, फिर भी क्या बीजेपी (BJP) के सत्ता में आने पर तीसरी बार वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) मुख्यमंत्री पद होंगी या फिर कोई नया चेहरा चुनेगी? इसी तरह से तमाम गलतफहमियों के बावजूद अशोक गहलोत पर कांग्रेस फिर से भरोसा करेगी या सचिन पायलट को आगे करके अपनी मुश्किलें बढ़ाएंगी?
क्या फिर लौटेंगी वसुंधरा राजे?
बीजेपी ने राजस्थान में अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) को चुनाव से कुछ वक्त पहले से ही किनारे कर दिया था मगर, चुनाव (Rajasthan Elections) आते आते उनको वापस प्रमुखता मिलनी शुरू हो गई। यह सभी जानते है कि राजे का बीजेपी (BJP) आलाकमान के साथ रिश्ता कोई बहुत सहज नहीं है। सबसे पहले तो उन्हें पिछले चुनावों की तरह शीर्ष पद के लिए भगवा पार्टी के अग्रणी दावेदार के रूप में पेश नहीं किया गया, साथ ही उनके कई वफादारों को भी टिकट देने से इनकार कर दिया गया था। मगर, उम्मीदवारों की दूसरी सूची और उसके बाद की सूचियों में बीजेपी सुंमधरा राजे के लगभग सारे समर्थकों को मैदान में उतारकर राजे को संतुष्ट करती नजर आई। पूरे चुनावी माहौल में साफ दिख रहा है कि इस बार के चुनाव (Rajasthan Elections) में, वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ने अपनी समस्त शक्ति लगाकर जबरदस्त प्रदर्शन किया है और संकेत दिया है कि बीजेपी (BJP) किसी भी परिस्थिति में उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकती है। हालांकि, प्रदेश बीजेपी में गुटबाजी के बीच, राजे (Vasundhara Raje) असंतुष्ट नेताओं तक पहुंच बनाने में सफल रही हैं और उनकी पहुंच असहमत नेताओं को भी शांत करने की रही है और उन्होंने अपने तरीके से उनसे निपटा है और कई लोगों को प्रेरित किया है। हालाँकि, बीजेपी ने फिर भी उन्हें शीर्ष पद के लिए अपनी पसंद के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। फिर भी मामूली बहुमत मिलता है तो राजस्थान में केवल वसुंधरा राजे ही हैं, जो अपने समर्थकों को एकजुट करने के लिए उनके नेतृत्व का सहारा ले सकती है।
Rajasthan Elections में बीजेपी के पास क्या विकल्प?
वैसे, बीजेपी (BJP) के पास नेताओं की कोई कमी नहीं है। ऐसे में जाति, वर्ग, समाज, केंद्रीय नेतृत्व से संबंध और प्रादेशिक नेताओं को जोड़े रखने के कौशल सहित बीजेपी आलाकमान का फैसला कई कारकों पर आधारित होगा। बीजेपी देशव्यापी स्तर पर ओबीसी को लुभाने की कोशिश में है। ऐसे में वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के अलावा अन्य बड़े नामों में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत (राजपूत), केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (दलित), राजस्थान में भाजपा के नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़, पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन राठौड़, राजस्थान के पूर्व भाजपा प्रमुख सतीश पूनिया (जाट), लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, राजस्थान बीजेपी (BJP) प्रमुख सीपी जोशी और, आश्चर्यजनक रूप से, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव (ओबीसी) के नाम सबसे आगे हैं। बीजेपी अलवर से सांसद महंत बालकनाथ पर भी विचार कर सकती है, जिन्हें तिजारा सीट से विधानसभा चुनाव (Rajasthan Elections) के लिए टिकट दिया गया है। बालकनाथ, जिन्होंने खुद को हुलिये से लेकर हाव भाव तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुरूप बनाया है, उनके भी प्रदेश बीजेपी (BJP) की ओर से सरकार में शीर्ष पद के लिए दावेदार होने की संभावना है।
कांग्रेस में अशोक गहलोत ही क्यों?
कांग्रेस में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में सबसे सामने हैं। कहा जा सकता है कि राजस्थान काग्रेस (Congress) में उनकी बराबरी में कोई और नेता नहीं है। न अनुभव में, न लोकप्रियता में, न राजनीतिक रूप से समृद्ध तथा न ही सबको साथ लेकर चलने के मामले में। गहलोत हर मामले में किसी भी कांग्रेस नेता से ज्यादा भारी हैं। फिर सरकार के मुखिया के रूप में उनकी योजनाएं जन जन की जुबान पर हैं। सन 1980 में पहली बार सांसद बनने के बाद कुल पांच बार सांसद, तीन प्रधानमंत्रियों के साथ चार बार केंद्र में मंत्री, तीन बार प्रदेश कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष और तीन बार मुख्यमंत्री रहनेवाले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) आज राजस्थान में किसी भी दल में निर्विवाद रूप से सबसे बड़े और सबसे अनुभवी नेता माने जाते हैं, मगर उनके सामने अकेली चुनौती हैं कांग्रेस आलाकमान का नए सिरे से विश्वास हासिल करना, जिस पर सितंबर 2022 में थोड़ा संशय पैदा हो गया था। हालांकि गहलोत प्रदेश कांग्रेस (Congress) में एक अजेय योद्धा के रूप में जाने जाते हैं, तथा इस चुनाव (Rajasthan Elections) के बाद फिर से कांग्रेस को बहुमत मिलता है, या वह बहुमत के करीब भी पहुंचती है, और कुछ विधायक कम भी पड़ते हैं, तो केवल गहलोत ही हैं, जो कांग्रेस को सत्ता में ला सकते हैं। फिर गहलोत (Ashok Gehlot) की लोकप्रियता इस बात को लेकर भी है कि उन्हीं की जनप्रिय योजनाओं के कारण कांग्रेस के प्रति जनमानस में धारणा बदली है।
कांग्रेस के पास और क्या विकल्प हैं?
अगर राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में आती है, तो कांग्रेस के पास गहलोत (Ashok Gehlot) के अलावा केवल दो ही विकल्प हैं और वह है सीपी जोशी और सचिन पायलट। काग्रेस (Congress) में पायलट जो कि सन 2018 से ही सीएम इन वेटिंग के रूप में कांग्रेस में जाने जाते हैं। राजस्थान कांग्रेस में उनका बड़ा प्रभाव है और खासकर पूर्वी राजस्थान में उनकी जाति के गुर्जर समर्थकों का जबरदस्त दबदबा होने के कारण बीते पांच साल में लगातार उनको मुख्य़मंत्री बनाने की मांग उठती रही। मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में एक बार तो जून 2020 में पायलट अपने कुछ समर्थकों को लेकर मानेसर जाकर छुप गए थे और उन पर अपनी ही पार्टी (Congress) की सरकार को गिराने की कोशिश के आरोप लगे जिसका खामियाजा उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्य़मंत्री पद से हाथ धोकर चुकाना पड़ा। हालांकि उसके बाद भी पायलट कभी नाराजगी में, तो कभी समर्पित भाव से कांग्रेस (Congress) के लिए काम करते रहे, मगर उनमें 2018 के चुनाव (Rajasthan Elections) वाला उत्साह कभी नहीं देखा गया। अब अगर सरकार बनाने के हालत में कांग्रेस आती भी है, तो उनके नाम पर विचार किया जा सकता है, ऐसा उनके समर्थकों का मानना हैं। प्रदेश कांग्रेस (Congress) में वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी भी दावेदार कहे जा सकते हैं। वे 40 साल से विधानसभा व संसद में रहे हैं, प्रदेश व केंद्र में मंत्री पद का अनुभव हैं, पीसीसी अध्यक्ष रहे हैं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (Congress) के महासचिव भी रहे हैं। हालांकि, सीपी जोशी पर कांग्रेस गहलोत को विश्वास में लेकर ही दांव खेल सकती है। माना जाता है कि पायलट को रोकने के लिए गहलोत सीपी के नाम पर हामी भर सकते हैं, मगर सबसे पहले वे खुद को ही आगे रखेंगे। हालांकि, फिलहाल तो सीपी जोशी की जात ही संशय के दायरे में है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि राजस्थान कांग्रेस (Congress) में हालात ऐसे बन चुके हैं कि गहलोत के विधानसभा में रहते हुए पायलट को विधायकों का बड़ा समर्थन हासिल हो ही नहीं सकता। फिर, 25 सितंबर 2022 को कांग्रेस आलाकमान गहलोत (Ashok Gehlot) को हटाने की कोशिश में अपना अपमान करा चुका है, इस कारण पायलट के नाम पर रिस्क लेना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।
आज 25 नवंबर हैं और राजस्थान अपनी विधानसभा के सदस्यों चुनने के लिए मतदान कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) रेगिस्तानी राज्य में सत्ताधारी को सत्ता से बाहर करने की तीन दशक से चली आ रही पुरानी परंपरा पर भरोसा करके सरकार में आने की उम्मीद कर रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस (Congress) का लक्ष्य इस प्रवृत्ति को खत्म करना और सत्ता में वापसी करना है। ऐसे में, सबकी जुबान पर सवाल केवल एक ही है कि अगर भगवा कही जाने वाली पार्टी बीजेपी (BJP) राजस्थान में कांग्रेस को पटखनी देती है तो उसका मुख्यमंत्री कौन होगा यह बड़ा सवाल है। जबकि हमें यह जानने के लिए 3 दिसंबर का इंतजार करना होगा कि इस बार कौन सी पार्टी राजस्थान के मतदाताओं को लुभाने में सफल रही।
-निरंजन परिहार
Rajasthan Election: रामेश्वर दाधिच का बीजेपी में जाना
Rajasthan Politics : कांग्रेस में बगावत की पहली दास्तान, जयनारायण व्यास को झटका, सुखाड़िया आसीन