Diya Kumari जयपुर की राजकुमारी के लिए यह हर्ष का विषय है कि वे उस बीजेपी (BJP) की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनी हैं, जो अयोध्या में उनके पूर्वज भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर बनाने का संकल्प लेकर अपनी राजनीतिक विकास यात्रा को साधने के सफर पर लगातार आगे बढ़ रही है। दीया कुमारी का दावा रहा है कि वे भगवान राम की वंशज हैं और उनके पिता जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह भगवान राम की 307वीं पीढ़ी थे। बीजेपी ने दीया कुमारी को भगवान राम की वंशज होने के कारण प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनाया है, यह तो नहीं पता, लेकिन यह खबर जरूर बेहद चर्चा में है कि वसुंधरा राजे को दरकिनार करने और राजस्थान के राजपूतों का साथ बनाए रखने के लिए दीया कुमारी (Diya Kumari) को आगे बढ़ाया जा रहा है।
Diya Kumari के पिता बीजेपी से हारे, उसी में उपमुख्यमंत्री
असल में राजकुमारी और अब राजमाता दीया कुमारी जयपुर शहर के विद्याधर नगर इलाके से उस बीजेपी (BJP) की विधायक हैं, जिस पार्टी के नेता गिरधारीलाल भार्गव ने दीया कुमारी (Diya Kumari) के पिता कर्नल भवानीसिंह को 1990 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त दी थी। हालांकि, तब वे महज 20 साल की रही होंगी। लेकिन दीया कुमारी को याद तो सब है कि कैसे गिरधारीलाल भार्ग ने खुद को दीया (दीपक) और उनके महाराजा पिता भवानीसिंह को तूफान बताकर केवल ‘तूफान और दीया’ फिल्म में भरत व्यास के लिखे एक गीत की पंक्ति से ही चुनाव में हरा दिया था कि – ‘ये लड़ाई दीये की और तूफान की।‘ आज उन भवानी सिंह की बेटी दीया कुमारी बीजेपी के राज में उप मुख्यमंत्री ही नहीं ताकतवर नेता भी हैं। इतनी ताकतवर कि वसुंधरा राजे जैसी सक्षम, समर्थ व सबल नेता के विकल्प के रूप में बीजेपी उनको आगे कर रही है।
दीया ने पैर छुए तो राजे ने दिया माथे पर आशीर्वाद
दीया कुमारी (Diya Kumari) के बहाने समकालीन राजनीति का और खासकर राज परिवारों की राजनीति का एक पूरा खाका आप खींच सकते हैं। परंपरागत शाही राज परिवार की दीया कुमारी का लोकतांत्रिक राजनीतिक सफर करीब 10 साल पहले सवाई माधोपुर से शुरू हुआ, जहां से वे सन 2013 में विधायक चुनी गईं। कहते हैं कि राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) उनको राजनीति में लाईं, बीजेपी (BJP) में पहले सवाई माधोपुर से विधायक बनवाया, फिर राजसमंद से सांसद भी। लेकिन वसुंधरा को जब लगने लगा कि दीया कुमारी के पंख लगने लगे हैं, पंख कतरने की कोशिश में दोनों की दोस्ती धीरे धीरे तनातनी में बदल गई। हालांकि, वसुंधरा राजे और दीया कुमारी में उम्र का फासला मां – बेटी जितना है। शायद इसीलिए दीया कुमारी जब उपमुख्यमंत्री बनीं, और पदभार सम्हाला, तो उन्होंने सारे मतभेद भुलाकर वसुंधरा राजे के पैर छुए तो राजे ने भी दीया के माथे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) मजबूत नेता रही है, और दीया कुमारी मजबूती की राह पर हैं, लेकिन महारानी वसुंधरा राजे के धौलपुर राजघराने के मुकाबले राजघरानों की राह में दीया कुमारी का जयपुर राजघराना राजपुताने में सबसे मजबूत माना जाता रहा है, समृद्धि में, क्षमता में और संपत्ति में भी।
दो बेटे, दोनों राजकुमार व एक बेटी की मां दीया
दीया कुमारी (Diya Kumari) के जीवन की कहानी हमारे समय की राजनीति की एक प्रतिनिधि कथा है। दो बेटों व एक बेटी की मां दीया कुमारी सन 1971 में जन्मीं और सन 1997 में उन नरेंद्र सिंह के साथ विवाह किया था, जो उन दिनों उनके पिता भवानी सिंह के ड्राइवर के बेटे थे। राज परिवार इस विवाह से कोई बहुत खुश नहीं था, और कारण यह भी था कि दोनों एक ही गौत्र के थे। दीया कुमारी और नरेंद्र सिंह का वैवाहित जीवन कोई बहुत ज्यादा लंबा नहीं चला। लगभग 19 साल तक साथ में रहने के बाद सन 2018 में दीया और नरेंद्र ने वैवाहिक संबंध विच्छेद करने का फैसला किया। दीया कुमारी और उनके पति दोनों ने रिश्तों की गरिमा इतनी रखी कि एक दूसरे से दूर होने की बातें चौराहों की चर्चा का विषय कभी नहीं बन सकीं, ठीक उनको राजनीति में लाने वाली वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के निजी जीवन की कहानी की तरह। उनके भी धौलपुर से घरती पर आने की घटना कभी किस्से कहानियों का हिस्सा नहीं बन पाईं।
लंदन में पढ़ी दीया 10 साल में ही बन गईं सत्ता की केंद्र
जैसा कि आम तौर पर भारतीय राजघरानों के लोग विदेश में पढ़ाई करना ही पसंद करते हैं, राजस्थान की नई उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी (Diya Kumari) ने भी ब्रिटेन से पढ़ाई की है। उन्होंने लंदन में डेकोरेटिव आर्ट्स में अपनी पढ़ाई की है। वे सन 2013 में राजनीति में आईं सबसे पहले विधायक बनीं, फिर सांसद और अब विधायक बनने के बाद तत्काल उप मुख्यमंत्री। केवल 10 साल में ही दीया कुमारी प्रदेश की सत्ता के केंद्र में स्थापित हैं और बीजेपी (BJP) की ताकतवर नेता भी। राज परिवार की होने के बावजूद शाही ठसक उनमें कभी दिखी नहीं और राजस्थान में कुछ स्कूल, ट्रस्ट, म्यूजियम व होटल आदि संचालन भी उनके हाथ है। इसीलिए यह तो कहा ही जा सकता है कि दीया कुमारी एक सफल उद्यमी भी हैं।
राम की वंशज को वसुंधरा का विकल्प बनने में वक्त लगेगा
दीया कुमारी (Diya Kumari) ने कुछ साल पहले जब दावा किया था कि उनका परिवार भगवान राम की 307वीं पीढ़ी हैं और पिता भवानी सिंह भगवान राम के वंशज है जिसके बारे में वे सुप्रीम कोर्ट में सबूत देने के लिए भी तैयार थी। हालांकि इसकी नौबत नहीं आई, लेकिन लोग अब भी उनकी इस बात पर कम ही भरोसा करते हैं। मगर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भरोसा जीतने में दीया कुमारी कामयाब रहीं हैं, इसीलिए कईयों को पछाड़कर वे बीजेपी (BJP) की सरकार में शिखर के पद की दूसरी पायदान तक तेजी से पहुंची हैं। राजनीति के मामले में दीयाकुमारी कोई वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) नही हैं और न उनकी राजनीतिक सफलता में वसुंधरा वाली तल्लीनता है। लेकिन तेजी से आगे बढ़ने और सवाई माधोपुर व राजसमंद और अब जयपुर से जन प्रतिनिधि चुने जाने के बाद उप मुख्यमंत्री बनने के उलझे हुए समीकरण सुलझाने में एक त्वरित तात्कालिकता जरुर है जो उन्हें वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का विकल्प बनने की मजबूरी में नही फंसाती। लेकिन राजनीति को मजबूरियों का मायाजाल माना जाता है, और दीया कुमारी की मजबूरी यह है कि वे अपनी ताकत के बल पर वसुंधरा राजे की तरह मुख्यमंत्री तब तक नहीं बन सकती, जब तक कि बीजेपी का आलाकमान नहीं चाहे।
-निरंजन परिहार