निरंजन परिहार
राजस्थान में सत्ता में आने के सपने देख रही बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली सूची आते ही पार्टी में जूतमपैजार शुरू हो गई है। बयानबाजी चरम पर है और पार्टी में जो एकता व एकजुटता होने की बात कही जा रही थी, उसकी सच्चाई सामने आ गई है। बिखराव बगावत की शक्ल में हुंकार भर रहा है और दिग्गज नेता भी अपने भविष्य के प्रति आशंकित होने से मन लगाकर काम नहीं कर पा रहे हैं। वसुंधरा राजे के ज्यादातर उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है और पहली सूची में जिन 7 सांसदों को विधायकी की उम्मीदवारी दी गई है, उनके पसीने छूट रहे हैं। किसी सांसद पर हमला हो रहा है, तो किसी को ललकारा जा रहा है, कहीं सांसद की उम्मीदवारी के विरोध में कार्यकर्ता मुखरित हो रहे हैं, तो कोई काले झंडे दिखा रहा है। हालांकि चुनाव पूर्व आए एक सर्वे में कांग्रेस को 59 से 69 सीटें और बीजेपी को 127 से 137 सीटें तक मिलने की संभावना का जबरदस्त प्रचार करके कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बड़े नेताओं के टिकट कटने, दिग्गजों के नाम पहली सूची में न होने तथा जिनको टिकट मिला, उनका विरोध होने सा माहौल खराब हो रहा है। नाराज कार्यकर्ता जयपुर में बीजेपी मुख्यालय पर धरना दे रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं। राजस्थान में ना केवल मारवाड़ या मेवाड़ बल्कि ढूंढाड़ से लेकर हाड़ौती और वागड़ इलाके तक वसुंधरा राजे पार्टी की अकेली ऐसी नेता हैं, जिनकी लोकप्रियता राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी की है तक है। पहली सूची में नाम न होने तथा अपने समर्थकों के टिकट काटे जाने से वसुंधरा राजे नाराज हैं, लेकिन बोल नहीं रही है। लगने लगा है कि समर्थकों का और नुकसान किया गया, तो वसुंधरा बीजेपी का खेल बिगाड़ भी सकती है। समझ नहीं आ रहा है कि बीजेपी कैसे सम्भालेंगी राजस्थान।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बीजेपी की सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन, बीजेपी की पहली सूची में का उनका नाम ही नहीं है। विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ और सबसे सक्रिय नेता पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया काे नाम भी नहीं है। इनके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, पूर्व अध्यक्ष अशोक परनामी, आदि वरिष्ठ नेताओं के भी नाम घोषित नहीं किए गए। जबकि जिन 41 उम्मीदवारों की घोषणा की गई, उनमें से आधे से ज्यादा हार सकते हैं। पहली ही सूची में प्रदेश के दिग्गज, स्थापित और शत प्रतिशत जीतने वाले उम्मीदवारों के नाम नहीं होने से वे भी खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं और कार्यकर्ता असमंजस में है कि इतने बड़े बड़े नेताओं के नाम भी पहली सूची में आखिर क्यों नहीं है। इसके अलावा नरपत सिंह राजवी तथा राजपाल सिंह शेखावत जैसे धुरंधर नेताओं के टिकट काट दिए जाने से जो बवाल उठ रहा है, उसे देखकर बीजेपी की राह मुश्किल जरूर हो रही है। कार्यकर्ता नाराज है और नेता हताश। सभी इस असमंजस में है कि जिन ताकतवर दिग्गज नेताओं की उम्मीदवारी की पहली सूची में घोषणा नहीं हुई है, उनमें से क्या पता किसका टिकट कट जाए।
बीजेपी की इस सूची में कुल 9 ऐसे नेताओं को उम्मीदवारी मिली है, जिन्होंने पिछला चुनाव पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ बागी होकर लड़ा था। इसके अलावा बीजेपी ने 7 सांसदों के नाम विधानसभा उम्मीदवारी की पहली सूची में घोषित किए हैं। दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़, बालकनाथ, देवजी पटेल, किरोड़ी लाल मीणा, भागीरथ चौधरी और नरेंद्र कुमार जैसे सभी सांसद मोदी लहर में और पार्टी के नाम पर चुनाव जीतते रहे हैं। इनमें से ज्यादातर को विधानसभा चुनाव लड़ने को कोई अनुभव नहीं है। जालोर से तीन बार के सांसद देवजी पटेल जब जिम्मेदारी लेकर अपने विधानसभा क्षेत्र सांचौर पहुंचे, तो रास्ता रोककर लोगों ने जमकर विरोध किया। काले झंडे दिखाए, नारेबाजी की और उनकी गाड़ी पर हमला भी किया, कार के कांच फूटे और गाली गलौज भी हुआ। प्रदेश में गुर्जर मतदाताओं को जोड़ने की रणनीति के तहत बीजेपी ने स्वर्गीय गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को गुर्जर बहुल सीट देवली उनियारा से उम्मीदवार बनाया, तो वहां भी उनका विरोध हो रहा है। अलवर के सांसद बाबा बालक नाथ को तिजारा में, अजमेर के सांसद भागीरथ चौधरी को अपने किशनगढ़ में ही खुला विरोध झेलना पड़ रहा है। इसी तरह केकड़ी में उम्मीदवार शत्रुघ्न गौतम के सामने पिछली बार के उम्मीदवार राजेंद्र विनायका ने मोर्चा खोल दिया है। जयपुर शहर के विद्याधर नगर से उम्मीदवार सांसद दीया कुमारी के खिलाफ भी वर्तमान विधायक नरपत सिंह राजवी ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। राजवी देश के उपराष्ट्रपति रहे भैरोंसिंह शेखावत के वारिस हैं और प्रदेश में बड़े नेता माने जाते हैं। सांसद दीया कुमारी जयपुर राजघराने की बेटी हैं, लेकिन राजवी अपना टिकट काटे जाने से नाराज हैं।
लगभग अराजक होने की हद तक खराब हालात देखकर बीजेपी के संगठन में बैठे बड़े नेताओं के पसीने छूट रहे हैं और भले ही यह कहा जा रहा है कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ठीक होना इतना आसान भी नहीं है। बीजेपी के ताकतवर नेता भवानी सिंह राजावत ने चेतावनी देते हुए कहा है कि टिकट नहीं दिया तो वे पार्टी के खिलाफ चुनाव निर्दलीय चुनाव लडेंगे। बीजेपी के एससी मोर्चा के उपाध्यक्ष बीएल भाटी ने भी नाराजगी जाहिर करते हुए सुजानगढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। भरतपुर जिले में नगर सीट से अनिता सिंह गुर्जर ने बागी होकर चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए कहा है कि जिसे उम्मीदवारी दी है, उसकी जमानत जब्त होगी, क्योंकि मैं लड़ूंगी और जीतूंगी भी। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि बीजेपी में यह विरोध तभी रुकेगा जब वसुंधरा राजे चाहेंगी। इन नाराज नेताओं को मनाना प्रदेश अध्यक्ष सांसद सीपी जोशी के लिए भी आसान नहीं है, क्योंकि वे सभी नेता उनसे ज्यादा वरिष्ठ हैं और उम्र व अनुभव में तो बहुत बड़े नेता हैं।
पूरे राजस्थान ने ही नहीं देश ने देखा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह पिछले दिनों जब – जब राजस्थान आए तो सभी नेताओं ने एकजुटता दिखाई और सभी ने एक सुर में साथ रहकर पार्टी को सत्ता में लाने का राग आलापा। मंच पर भाजपा के सभी प्रदेश नेताओं की उपस्थिति देखने को मिली। भले ही प्रधानमंत्री मोदी ने और अमित शाह ने भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को खास भाव नहीं दिया फिर भी हर बार लगभग अपमान के घूंट पीकर भी उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि पार्टी एकजुट है और वे हर हाल में साथ हैं। इसके बावजूद वसुंधरा राजे समर्थकों के टिकट काटकर किसी और को उम्मीदवारी देना तथा पहली सूची में दिग्गजों को नाम घोषित नहीं करना कुछ ऐसी बातें है, जिनकी वजह से सभी बड़े नेताओं का मन खट्टा है तथा वे अपने भविष्य को लेकर भी आशंकित हैं। पहली सूटची में वसुंधरा राजे के समर्थकों के ही टिकट ज्यादा काटे गए हैं, फिर भी वे मौन हैं। उनके मन में क्या है, य़ह कोई जान नहीं पा रहा है। वैसे, श्रीमती राजे वे समय की प्रतीक्षा करने में माहिर हैं, वे तब तक हथियार नहीं उठाती, जब तक कि शिकार सीधे रेंज में ना हो।
राजस्थान की राजनीति के जानकारों को ऐसा लग रहा है कि दिल्ली दरबार ने भले ही अपने फीडबैक के आधार पर पहली सूची जारी कर दी है, लेकिन बवाल ऐसा मच जाएगा, इसका फीडबैक क्यों नहीं मिला, यह भी तो सवाल है। राजस्थान बीजेपी के एक दिग्गज नेता का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह निश्चित तौर पर हमारे सबसे बड़े और सबसे सम्मानित नेता हैं, लेकिन इस तरह अन्याय व अपमान किया जाता रहा, तो राजस्थान में वे अपना सम्मान और सत्ता दोनों खो सकते हैं। इस नेता ने यह भी कहा कि मोदी और शाह को यह बात खयाल में रखनी होगी कि राजस्थान कोई गुजरात नहीं है, जहां बड़े पैमाने पर बड़े नेताओं की घर बिठा देने के बावजूद लोग चुप रहेंगे, यहां तो लड़ेंगे भी और किसी से डरेंगे भी नहीं।