Congress: देश यह समझने की कोशिश कर रहा है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रायबरेली (Raeareli) सीट बरकरार रखने और वायनाड सीट से अपनी बहन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) को लड़ाने के राजनीतिक संदेश क्या है। हालांकि, लोकसभा चुनाव (Parilament Election) शुरू होने से पहले ऐसी अटकलें थीं कि प्रियंका गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव अमेठी (Amethi) से लड़ेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि कांग्रेस (Congress) का मानना था कि इससे चुनाव में बीजेपी (BJP) को अनायास ही वंशवाद की राजनीति को लेकर कांग्रेस पर निशाने साधने का एक और मौका मिल जाएगा। लेकिन प्रियंका आखिरकार केरल के वायनाड़ (Wayanad) से लोकसभा उपचुनाव लड़कर चुनावी मैदान में उतरने जा रही हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि भाई ने बहन के लिए आखिर वायनाड क्यों छोड़ा और प्रियंका गांधी के संसद में पहुंचने का पार्टी के लिए क्या मतलब है, यह जानने के लिए सभी उत्सुक हैं।
वायनाड़ से प्रियंका मतलब दक्षिण से भी नाता मजबूत
प्रियंका गांधी के वायनाड़ से चुनाव लड़ने की बात पर राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस चाहती तो किसी और को भी वानाड़ से चुनाव लड़ा सकती थी, लेकिन राहुल की जगह प्रियंका को मैदान में उतारकर गांधी परिवार ने इस आलोचना को भी खारिज कर दिया है कि चुनावी लाभ लेने के बावजूद गांधी परिवार ने दक्षिण को छोड़ दिया है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार मानते हैं कि बीजेपी अगर फिर से 300 से अधिक सीटों के साथ सत्ता में लौटती तो प्रियंका गांधी वाड्रा शायद चुनाव न लड़ने का फैसला भी कर सकती थीं। लेकिन जैसा कि राजनीति का नियम है कि दुश्मन जब कमजोर हो, उसी दौर में ताकतवर सैनिकों की भर्ती तेज की जानी चाहिए। परिहार कहते हैं कि फिलहाल बीजेपी बैकफुट पर है और प्रियंका के लिए चुनावी शुरुआत करने का यही सही वक्त है। प्रियंका गांधी को वायनाड़ से संसद में लाने के इस कदम से कांग्रेस ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि उत्तर के साथ-साथ दक्षिण में भी गांधी परिवार का प्रतिनिधि मौजूद रहे। वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर ने कहा कि कांग्रेस का यह फैसला पार्टी नेतृत्व के लिए दक्षिण की रणनीति में केरल के महत्व को दर्शाता है। सोनवलकर मानते हैं कि गांधी परिवार के लिए वायनाड बहुत महत्वपूर्ण है। प्रियंका के वहां से चुनावी राजनीति में प्रवेश का मतलब होगा कि कांग्रेस नेतृत्व यह संदेश दे रहा है कि गांधी परिवार ने वायनाड को अपनाए रखा है। वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल कहते हैं कि राहुल गांधी ने चुनाव में वायनाड का दौरा करने और लोगों से किए गए अपने वादों को पूरा करने की कसम खाई थी, प्रियंका के वहां से चुनाव लड़ने से उनकी यह बात भी रह जाएगी और दक्षिण से कांग्रेस व गांधी परिवार का रिश्ता बरकरार रहेगा। रावल कहते हैं कि राहुल गांधी ने खुद ने भी कहा है कि प्रियंका के वहां की सांसद होने से वायनाड के लोग इस तरह से भी सोच सकते हैं कि उनके पास अब दो सांसद हैं, एक प्रियंका है और दूसरा वे खुद। कांग्रेस की धाराओं के जानकार अभिमन्यु शितोले बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी एक प्रचारक के तौर पर प्रियंका की क्षमताओं का भी उपयोग करना चाहती है, जो एक अच्छी वक्ता और भीड़ को आकर्षित करने वाली हैं नेता मानी जाती है। वे मानते हैं कि वायनाड उपचुनाव में उनके लिए जीत आसान होगी।

रायबरेली से राहुल हिंदी पट्टी में बढ़ाएंगे कांग्रेस की ताकत
राहुल गांधी के रायबरेली से सांसद बने रहने पर राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि कांग्रेस हिंदी पट्टी में अपनी संभावनाएं तलाश रही है और इसीलिए उत्तर प्रदेश से राहुल गांधी को आगे किया जाना कांग्रेस की जरूरत रहा है। वे कहते हैं कि राहुल का रायबरेली से सांसद रहना रणनीतिक रूप से समझदारी भरा कदम है। राहुल गांधी के रायबरेली सीट हाथ में रखने के पीछे एक संदेश छिपे हुए संदेश की बात कहते हुए राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि कांग्रेस इसके जरिए यह संदेश देना चाह रही है कि राहुल उस उत्तर प्रदेश को नहीं छोड़ रहे हैं, जिसने उन्हें और कांग्रेस को इस बार के लोकसभा चुनावों में अच्छे नतीजे दिए हैं। परिहार कहते हैं कि रायबरेली को अपने पास रखने के राहुल गांधी के फैसले में सिर्फ़ पारिवारिक विरासत की भूमिका ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन की वजह भी एक खास कारण है। वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर बताते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिलीं, जो 2014 के बाद से तीसरे चुनाव में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। अगर पार्टी अपना विस्तार जारी रखना चाहती है, तो उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हिंदी प्रदेश बेहद महत्वपूर्ण है। सोनवलकर बताते हैं कि इस चुनाव में सभी ने देखा है कि कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन से दोनों को फ़ायदा मिल रहा है, ऐसे में राहुल के इस कदम से 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में उसका जनाधार और मज़बूत होगा। वायनाड कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट है, लेकिन रायबरेली से गांधी परिवार का पारंपरिक संबंध है। देश के पहले आम चुनाव के बाद से गांधी परिवार ने 18 बार रायबरेली सीट जीती है। इस सीट का प्रतिनिधित्व सबसे पहले राहुल के दादा स्वर्गीय फिरोज गांधी ने किया था और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था।
राहुल और प्रियंका अब दोनों संसद में बनेंगे कांग्रेस की ताकत
राहुल गांधी के बारे में 18वीं लोकसभा चुनाव में दोनों सीटें जीतने के बाद से ही वायनाड़ छोड़ने की अटकलें लगाई जा रही थीं। राहुल वहीं सीपीआई की एनी राजा के खिलाफ 3.6 लाख वोट से जीते थे और कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को 3.9 लाख से अधिक वोट से हराया। हाल ही में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतीं और यूपी में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीतीं। जबकि विपक्षी गठबंधन की संख्या 43 हो गई, वहीं बीजेपी 2019 में 62 से घटकर 33 सीटों पर आ गई। इस बार के पिछले आम चुनाव, 2019 में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ एक सीट हासिल कर पाई थी – रायबरेली, जहां से सोनिया गांधी जीती थीं। इस बार कांग्रेस ने यूपी में सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद अपना वोट शेयर 2019 के 6.36 प्रतिशत से बढ़ाकर 9.46 प्रतिशत कर लिया है। कांग्रेस अपने पुनरुत्थान की राह पर आगे बढ़ने के साथ ही पार्टी इस बढ़त को भुनाना चाहती है, खास तौर पर उत्तर प्रदेश में। इसी कारण राहुल गांधी ने रायबरेली से सांसद बने रहना चाहा। राशिद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस अगले चुनाव से पहले के 5 साल के समय का सबसे अच्छा उपयोग करना चाहती है।

भाई – बहन दोनों मिलकर अब करेंगे कमजोर बीजेपी पर हमले
प्रियंका गांधी वाड्रा के वायनाड़ से चुनाव लड़ने का प्रकट कारण तो यही है कि 2008 में परिसीमन के बाद बनी वायनाड लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती है। कांग्रेस इस सीट के पहले चुनाव 2009 से ही यहां पर जीतती आ रही है और कांग्रेस का मानना है कि यहां से प्रियंका गांधी की हार के कोई आसार नहीं हैं। प्रियंका गांधी ने खुद ने ही कहा है कि वह वायनाड का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होने के लिए बहुत खुश हैं और वहां के लोगों को राहुल की अनुपस्थिति महसूस नहीं होने देगी। वैसे भी प्रियंका के लोकसभा में आने से कांग्रेस को एक स्पष्ट वक्ता के रूप में अतिरिक्त लाभ मिलेगा। लेकिन राजनीति की समीक्षा करनेवाले देश के जाने माने विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकारों सहित कांग्रेस की धाराओं के जानकार कहते हैं कि जो कारण प्रकट रूप में दिख रहे हैं, उनके अलावा भी कई खास कारण है। वैसे भी इस बार नरेंद्र मोदी एक कमज़ोर बहुमत के प्रधानमंत्री हैं, क्योंकि केंद्र में गठबंधन सरकार है। इसलिए यह विपक्ष के तौर पर राहुल को रायबरेली और प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड़ से संसद में विपक्ष में बैठाकर सरकार पर हमलों के जरिए पार्टी को नई ताकत देने का प्रयास है।
-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
यह भी देखेंः Rahul Gandhi: क्या नेता प्रतिपक्ष के रूप में सफल साबित होंगे राहुल गांधी, सबसे बड़ा सवाल!
यह भी पढ़ियेः Prashant Kishor: राहुल गांधी को ऐसा लगता है कि वह सब कुछ जानते हैं!