हमारा सिनेमा पहले के मुकाबले बोल्ड होता जा रहा है। हीरोइनें ही खुल्लम खुल्ला दिखने – दिखाने के दौर को मजे लेकर जीने लगी हैं। यह बदले दौर का बदला हुआ सिनेमा है। जो आनेवाले कुछ सालों में थोड़ा और बोल्ड होगा, यह तय है।
निरंजन परिहार
हमारी हीरोइनें अब अपने अब अपने इश्क के इजहार के लिए पेडों से लिपटने की मोहताज नहीं है। और न ही उन्हें अपने जवां जिस्म का जलवा दिखाने के लिए बरसते बादलों की दरकार हैं। गांव की गोरी तो सिनेमा के परदे से कब की बाहर हो गई, अब गोरी छोरी की धमक है। हीरोइन के मुंह से गालियां देना कभी भले ही संस्कृति के खिलाफ माना जाता रहा होगा। लेकिन अब हमारी हीरोइनों को सुलभ शौचालय वाले डायलॉग बोलना भी सुहाता है। चुंबनों की धुंआधार श्रंखला से लेकर ऑर्गेजम से मिले आनंद के अतिरेक को जीना हीरोइनों के लिए आसान हो चला है। यह नए जमाने के नये सिनेमा का नया परिदृश्य है, जहां सब कुछ खुल्लम खुल्ला परोसा जा रहा है। क्योंकि जिसे परोसा जा रहा है, उस दर्शक को भी तो, यही तो सब कुछ चाहिए था। दरअसल, हमारे सिनेमा के निर्माताओं ने इस राज को जान लिया है कि देसी दर्शक के दिमाग के दरवाजे भी अब बहुत विकसित हो चुके हैं। उसे जो मिला है, उससे भी कुछ ज्यादा चाहिए। और यह भी समझ में आ गया है कि हमारा दर्शक खुद भी खुलेपन को पहले के मुकाबले अब कुछ ज्यादा ही खुले अंदाज में जी रहा है। इसी कारण मनोरंजन के मामले में भी उसकी इच्छाएं खुलेपन वाले खेल के लिए कुछ ज्यादा ही खुल गई हैं।
कुछ साल पहले तक किसी भी सिनेमा की पहली जरूरत के रूप में सिर्फ एक्शन, इमोशन और ड्रामा को ही मूल तत्व माना जाता था। लेकिन अब इस सबमें बहुत बोल्ड किस्म के मसाले का तड़का भी दर्शक को चाहिए। फिर हमारी हीरोइनें भी हदें तोड़ने पर आमादा हैं। जिसे समाज के ठेकेदार टाइप के लोग वर्जनाओं का टूटना भी कह सकते हैं। लेकिन असल बात यह है कि जमाना बदला है। बोल्डनेस इस बदले हुए जमाने की जरूरत हो गई है। दर्शक अब जीवंत और जागृत होकर जिंदगी को जीना चाहता है। इसीलिए सिनेमा में सैक्स अब कोई वर्जना नहीं रहा। हीरोइनों के बदन के कपड़े तो बहुत पहले से, वैसे ही कम होने शुरू हो गए थे। अब तस्वीर यह है कि हीरोइनें खुद खुलकर खिली हुई खिलाडिन के रूप में सामने आने लगी है। तस्वीर सामने है कि वक्त बदला, लोग बदले और लोगों के जीने का अंदाज भी बोल्डनेस में बदला। तो, हमारा सिनेमा भी सांसों की सुगंध से भीने इश्क के इजहार के बदले बिस्तर पर दो जिस्मों के एक जान बन रहे सीन को सीधे – सीधे सजाने लगा। असल बात यह है कि हमारे सिनेमा ने सांस्कृतिक सीमाओं के दायरे को थोड़ा और आगे सरकाते हुए उस धारा में खुद को खड़ा कर दिया है, जहां सफलता की गारंटी शत प्रतिशत से कतई कम नहीं है।
आइए, बात करते हैं बीते एक दशक की फिल्मों की। ‘ख्वाहिश’ की मल्लिका शेरावत, ‘नो वन किल्ड जेसिका’ की रानी मुखर्जी, ‘तनु वेड्स मनु’ की कंगना राणावत, ‘द डर्टी पिक्चर’ की विद्या बालन, ‘कुर्बान’ की करीना कपूर, ‘काइट्स’ की बारबरा मोरी, ‘जिस्म-2’ और ‘रागिनी एमएमएस-2’ की सनी लियोनी, ‘बीए पास’ की शिल्पा शुक्ला, ‘हेट स्टोरी’ की पाओली डेम, ‘जूली’ की नेहा धूपिया, ‘जहर’ की उदिता गोस्वामी, ‘सिंस’ की सीमा रेहमानी, ‘द एक्सपोज’ की सोमाली राउत, ‘रास्कल्स’ की लीजा हैडन, ‘नशा’ की पूनम पांडे, ‘रंग रसिया’ की नंदना सेन जैसी बहुत सारी हीरोइनों सैक्स के सीन को सफलता के साधन के रूप में स्थापित करते हुए सैक्स के अद्भुत अंदाज से दर्शकों का दिल जीता है। ‘जिस्म’ और ‘राज’ की बिपाषा बसु के अलबेले अंदाज सबको सुहाए। यही नहीं ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’, ‘साहिब बीवी और गैंगेस्टर’, ‘ग्रैंड मस्ती’, ‘जुली’, ‘लव सेक्स और धोखा’, जैसी फिल्में देखे, तो भाषा में तो अपशब्द समा ही गए हैं। लेकिन इसके आगे की तस्वीर इतनी साफ हो गई है कि हीरोइनों को अब सीधे सादे सीन में भी सैक्सी अंदाज सुहा रहे हैं और हमबिस्तर होने के सीन में भी अंधेरे के बजाय उजाला ज्यादा पसंद आने लगा है। आखिर दर्शक की भी, जो परदे पर हो रहा है, वह सब कुछ साफ साफ दिखने की दरकार है। वरना वह फिल्म देखेगा क्यों।
यह जवां होते आधुनिक भारत के सिनेमा का सधा हुआ चेहरा हैं। जो सफल भी है, सबल भी है और समर्थ भी। इस तरह की फिल्मों में महेश भट्ट की ‘मर्डर’ को हमारे सिनेमा के लिए अहम मोड़ कहा जा सकता है। ‘मर्डर’ के साथ ही खुल्लम खुल्ला अंदाजवाली फिल्मों का दौर अचानक तेज हुआ और बोल्ड फिल्में पहले से कुछ ज्यादा बोल्ड हो गईं। महेश भट्ट कहते हैं कि आजकल जब फिल्मों को ए सर्टिफेक्ट मिलता है, तो निर्माता सिर पीटकर रोने के बजाय बहुत खुश होता है। क्योंकि यही ‘ए’ सर्टिफिकेट उसकी सफलता की कहानी गढ़ रहा होता है। भट्ट कहते हैं – सीधी सादी फिल्मों का जमाना गया। अगर आप किसी फिल्म फेस्टिवल के लिए फिल्म बना रहे हैं, तब तो कोई बात नहीं। लेकिन मुख्य धारा के सिनेमा में तो ‘मर्डर’ और’ जिस्म’ जैसी फिल्में ही चलेंगी। ‘चीनी कम’ फिल्म में अपने से बहुत कम उम्र की हीरोइन नायिका तब्बू के साथ शारिरक संबंध स्थापित न कर पाने से झुंझलाते अमिताभ बच्चन का हवाला देते हुए समाज शास्त्री डॉ. विजय शर्मा कहते हैं – यह फिल्म हमारे सिनेमा में एक नई किस्म का प्रयोग थी। जो समाज के एक बहुत बड़े तबके की असलियत है। डॉ. शर्मा, प्रियंका चोपड़ा से लेकर माधुरी दीक्षित और हेमामालिनी से लेकर हमारे सिनेमा के कई सितारों की खूबसूरती संवार चुके हैं। उनका कहना है कि आजकल की हीरोइनें अपने बदन को दिखाने में बोल्डनेस महसूस करती है। और पुरानी फिल्मों की तरह उन्हें इसके लिए बादलों से बरसती बूंदों में भीगने की जरूरत महसूस नहीं होती। वे कहीं भी, किसी भी तरह से अपने असली अंदाज को आवरण में ढंककर रखना नहीं चाहती। यही कारण है कि जिन्हें भले ही अभिनय कम आता हो, वे भी बहुत ज्यादा चल जाती हैं। सनी लियोनी इसका सबसे सटीक उदाहरण है। सनी के इंटरनेट पर अंतरंग अंदाज के अनेक अवतारों को देखने के बाद कौन नहीं चाहेगा कि उनकी फिल्म को भी देख लिया जाए। ‘बीए पास’ की बोल्डेस्ट हीरोइन के रूप में हमारे सामने खड़ी शिल्पा शुक्ला पूछती है – किसी फिल्म में किसी के साथ सोने के दृश्य को अगर आप पूरे परदे पर अंधेरा करके दर्शक को सिर्फ सिसकारियां सुनाएंगे, तो क्या वह थियेटर छोड़कर चला नहीं जाएगा ? शिल्पा कहती है – नए जमाने का दर्शक नएपन के साथ हर बार नई तरह का सिनेमा चाहता है। अब दर्शक को अगर आप बीस साल पहले की फिल्मों की तरह बलात्कार के सीन को किसी फूल को मसलाने के रूप में दिखाएंगे, तो वह परदा फाड़ डालेगा। अब दर्शक को ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों’ जैसे सिर्फ गीत ही नहीं चाहिए, उसे खुल्लम खुल्ला प्यार का दृष्य भी साफ साफ देखना है। इसी कारण हमारे सिनेमा के परदे पर सीदे सीधे जलते हुए दो बदन दिखाने का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है। पूनम पांडे और शर्लिन चोपड़ा जैसी बोल्ड कही जानेवाली बालाएं और विदेशी धरती से हमारे सिनेमा में काम करने आ रही बहुत सारी चिकनी चमेलियां भी खूब सफल हो रही हैं।
फिल्में तो खैर, ऊंची ऊंची दीवारों के बीच अंधेरे में अंदर बैठकर देखी जाती है। सो, बहुत बोल्ड भी हो तो चल जाती है। लेकिन हमारे सिनेमा के पोस्टर भी इन दिनों बहुत बोल्ड हो रहे हैं। गर्मागर्म दृश्यावली अब पोस्टर पर भी प्रदर्शित है रही हैं। लेकिन यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है। सामाजिक स्तर पर भी रहन-सहन व शरीर ढंकने के अंदाज में बहुत बड़ा बदलाव आया है। हम देखते ही हैं कि जवान लड़कियों के बदन पर कपड़े लगातार कम हो रहे हैं। बंद गले के ब्लाउज आउट ऑफ फैशन हैं और क्लीवेज डीप ब्लाउज का जमाना है। क्लीवेज डीप ब्लाउज को इस तरह ज्यादा आसानी से समझा जा सकता है कि दर्शक अब स्तनों की दरारें दिखानेवाले ब्लाउज में हीरोइनों को पसंद करता है। संभवतया इसीलिए दीपिका पादुकोण, सोनम कपूर, सोनाक्षी सिन्हा और प्रियंका चोपड़ा जैसी हमारे सिनेमा की स्थापित नायिकाएं भी देह दर्शन के मामले में किसी न किसी रूप में सनी लियोनी की होड़ करती सी लगती हैं। चार्टर्ड अश्विन नागर बताते हैं कि उनके कॉलेज के दिनों में जयपुर में जब कोई इंग्लिश फिल्म लगती थी, तो हॉल के बाहर सबसे ज्यादा भीड़ नजर आती थी। लेकिन टिकट की कतार में लगा हर दर्शक एक दूसरे से नजरें चुराता सा दिखता था। यह वह दौर था, जब हिंदी फिल्में परम सात्विक किस्म की हुआ करती थी और उनमें अगर किसी हीरोइन का पल्लू भी थोड़ा सा सरका हुआ दिख जाता था, तो दर्शक आउट ऑफ कंट्रोल हो जाया करते थे। लेकिन आज तो तब की इंग्लिश फिल्मों जितना ही खुलापन हमारी हिंदी फिल्मों में भी दिखता है। अश्विन नागर और उनके साथी अनिल अग्रवाल को इंग्लिश फिल्म बेसिक इंस्टिक्ट और माइ ट्यूटर देखने के लिए छुप छुपकर जाना पड़ा था। मगर, अब उस ऊम्र के लड़कों के लिए भी सब कुछ बहुत सहजता के साथ हिंदी सिनेमा में भी परोसा जा रहा है। फिल्म समीक्षक इंद्र मोहन पन्नू कहते हैं – यह बदले हुए समाज का आईना है। समाज जैसा है, वहीं सिनेमा में दिखता है और समाज वही देखना भी चाहता है। इसी कारण हर बोल्ड फिल्म के बाद अगली फिल्म और बोल्ड होती जा रही है।