संसदीय लोकतंत्र में सिनेमा के सितारों की उपस्थिति भीड़ को तो आकर्षित करती है, लेकिन वे सितारे जब संसद में पहुंमचते हैं, तो उनमें से कुछेक की शैली लोकतंत्र को लांछित करनेवाली सी लगती है। ताजा मामला रेखा का है, जो संसद में उपस्थिति से लेकर संसदीय कार्यप्रणाली पर सवाल के रूप में खड़ी है। इस बार इसी पर यह लेख –
निरंजन परिहार
अपने हुस्न के जलवों, अनोखी अदाओं और कला के करिश्मे से सिनेमा के परदे पर अच्छे अच्छों के छक्के छुड़ानेवाली रेखा के संसद में छक्के छूट रहे हैं। वे संसद में कब बोली थी, वहां उन्होंने अब तक क्या किया, कितने सवाल पूछे और कौनसी चर्चा में भाग लिया, यह कोई नहीं जानता। न किसी ने उन्हें संसद में बोलते देखा और न देश ने कभी सुना। पांच साल हो गए हैं, लेकिन संसद में उनकी आवाज सुनने के लिए देश तरस रहा है। अप्रैल 2012 में राज्यसभा में नामित की गई अभिनेत्री रेखा ने भी अपने साढ़े पांच साल के संसदीय जीवन में न तो कोई सवाल पूछा और न ही किसी चर्चा में हिस्सा लिया। कांग्रेस पार्टी की तरफ से रेखा से कई कहा गया कि वे संसद में अपनी हाजरी बढ़ाएं, मगर रेखा हैं कि उन पर किसी का कोई असर नहीं होता। अपना दावा है कि साढ़े पांच साल बीत जाने के बावजूद रेखा को यह भी नहीं पता कि संसदीय कारवाई में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव क्या बला है, और तारांकित व अतारांकित प्रश्न के बीच क्या फर्क है, शून्यकाल के मायने क्या होते हैं और औचित्य के मुद्दे पर कैसे बोला जाता है। रेखा को यह भी नहीं पता कि सांसद होने के नाते उनके क्या अधिकार हैं और राष्ट्र के प्रति उनकी संसदीय जिम्मेदारी क्या है।
वैसे देखा जाए, तो फिल्मी सितारों की फितरत है कि हमारी दुनिया के बीचों बीच रह कर भी वे अपनी एक अलग निजी दुनिया में खुद से ज्यादा किसी भी अन्य व्यक्ति या काम को महत्वपूर्ण नहीं मानते। इसी कारण, संसदीय कारवाई में भी सिनेमा के लोगों की रुचि कम ही होती है। राजनीतिक विश्लेषक अभिमन्यु शितोले कहते हैं कि राजनीति भले ही सेवा का पेशा माना जाता हो, लेकिन ग्लैमर की दुनिया में सेवा का कोई खास महत्व अकसर नहीं होता। सो, रेखा और बाकी सितारों को दोष देने का कोई खास मतलब नहीं है। अभिमन्यु शितोले की राय में असल दोष तो उनका है, जिन्होंने कला के नाम पर नाकारा लोगों को संसद में नामित करने का पाप किया है।
सिनेमा की दुनिया में अपनी जिंदगी के मिनट मिनट की गिनती का गजब हिसाब रखनेवाली रेखा का गणित अगर थोड़ा सा भी ठीक-ठाक है, तो उन्हें जरूर पता होगा कि एक साल में 5 लाख 25 हजार 600 के हिसाब से पांच साल में कुल 26 लाख, 28 हजार मिनट होते हैं। इन लाखों मिनटों के सामने सिर्फ दो मिनटों की कोई औकात नहीं होती। लेकिन वे संसद में दो मिनट भी नहीं बोलीं। इन पांच साल के कुल 1825 दिनों में से वे केवल 18 दिन ही संसद में आईं। और, इन 18 दिनों में भी वे कुल मिलाकर कुछ घंटे ही संसदज में रहीं। रेखा को कांग्रेस ने अप्रेल 2012 में राज्यसभा में मनोनीत किया था, और उनके मनोनयन के वक्त कांग्रेस और उसके नेताओं ने कम से कम यह तो नहीं ही सोचा होगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रेखा अपनी पार्टी का इस तरह से मखौल उड़वाएगी। संसद से गायब रहने के मामले में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाने की सबसे बड़ी दावेदार रेखा से कांग्रेस निराश है, देश हताश है और चाहनेवाले परेशान। वैसे, संसद में मनोनीत होने के बाद से ही संसद उनके दर्शन के लिए तरसती रही हैं। और तो और कई विशिष्ट अवसरों पर, जब संसद में सारे सांसदों को उपस्थित रहना होता है, और कांग्रेस को बहुत आक्रामक अंदाज में सरकार पर हमले बोलने होते हैं, तब भी रेखा मेज ठोंकने के लिए भी संसद में हाजिर नहीं रहीं। यह अलग बात है कि संसद में मेज थपथपाने के मायने क्या होते हैं, यह भी पता नहीं रेखा जानती भी हैं कि नहीं।
संसद में बैठनेवाले बाकी सितारों की बात करें, तो किरण खेर का नाम सबसे शिखर पर है। आंकड़े देखें, तो चंडीगढ़ की सांसद किरण खेर की संसद में उपस्थिति 85 फीसदी है। और यह सिनेमा के सितारों की संसद में उपस्थिति का सबसे बड़ा आंकड़ा है। अहमदाबाद से बीजेपी सांसद परेश रावल और नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के भाजपा सांसद भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी की उपस्थिति 76 फीसदी रही है। मथुरा की सांसद और अभिनेत्री हेमा मालिनी की उपस्थिति भले ही 37 प्रतिशत रही है। लेकिन साढ़े तीन सालों में उन्होंने 10 चर्चाओं में हिस्सा लिया और कुल 113 सवाल पूछे है। तृणमूल की बांकुरा से बहुत खूबसूरत सांसद मुनमुन सेन और राज्यसभा सांसदअभिनेता मिथुन चक्रवर्ती का हाल भी बिल्कुल रेखा के जैसा ही है। उनकी हाजिरी 5 प्रतिशत वाली रेखा के मुकाबले 10 प्रतिशत से भी कम रही है। मिथुन अप्रैल 2014 में सांसद बने थे, लेकिन साढ़े तीन साल बीत गए, उन्होंने न तो कोई सवाल पूछा है और न ही किसी चर्चा में भाग लिया। जबकि कला जगत के प्रतिनिधि के रूप में स्मृति इरानी और बाबुल सुप्रियो भी संसद में हैं, वे केंद्र में मंत्री भी हैं, लेकिन संसद में उनकी उपस्थिति और संसदीय कामकाज पर कोई ऊंगली नहीं उठा सकता। होने को तो राज बब्बर, शत्रुघ्न सिन्हा, जया बच्चन भी ऐसे ही फिल्मी सितारे हैं, जो राजनीति में तो राज कर ही रहे हैं, सिनेमा में भी भरपूर सफल, सक्षम और सक्रिय हैं। लता मंगेशकर आदरणीय हैं, लेकिन सिर्फ इस वजह से उनके लोकतांत्रिक पाप को माफ नहीं किया जा सकता। रेखा की तरह ही स्वरसाम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर न कभी संसद में बोलीं, न कोई सवाल पूछे और न ही किसी चर्चा में भाग लिया। लता मंगेशकर रिटायर भी हो गई पर उनको सांसद के नाते मिलनेवाले विकास के फंड का भी उन्होंने पूरा उपयोग नहीं किया। यही हाल रेखा का भी है। इस हिसाब से रेखा ने न सिर्फ देश के लोगों को धोखा दिया है, बल्कि आम जनता की जेब भी काटी है। कांग्रेस पार्टी के एक नेता बताते हैं कि पार्टी की तरफ से रेखा को कई बार यह संदेश भेजा गया है कि वे संसद सवाल उठाएं। लेकिन रेखा तो खुद एक सवाल बनकर खड़ी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने अगर कहा है कि सचिन तेंडुलकर और रेखा सदन में नहीं आ रहे हैं, इसका मतलब है कि वो लोकतंत्र के प्रति गंभीर नहीं हैं, इसलिए उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए, तो गलत क्या कहा है।