अरविंद चोटिया
राजस्थान में चूरू, सरदारशहर और तारानगर का एक गहरा राजनीतिक रिश्ता है और इस प्लास्टिक चढ़ी मिठाई से इस रिश्ते की गहनता को समझने में आसानी होगी। जो मिठाई खिला रहे हैं, वे विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ हैं, और जो मुंह फाड़कर मिठाई खाने को आतुर हैं, वे डॉक्टर चंद्रशेखर बैद हैं, दिग्गज कांग्रेसी रहे चंदनमल बैद के बेटे। चंदनमल बैद कुल 8 बार विधायक व कई बार मंत्री रहे। सबसे पहले सन 1957 फिर 1962, 1967 और 1972 में वे सरदारशहर से विधायक चुने जाते रहे। बाद में बैद तारानगर शिफ्ट हो गए और सन 1980, 1990, 1993 और 1998 में वे जीवन के अंत तक तारानगर से ही विधायक चुने गए। बुढ़ापे में आई अशक्ति के कारण 2003 में चंदनमल बैद ने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपनी सरपरस्ती में एसएमएस मेडिकल कॉलेज में मेडीसिन के प्रोफेसर अपने डॉक्टर बेटे चंद्रशेखर बैद को यहां से चुनाव लड़वाकर जितवाया, विधायक बनाया और इस तरह बीस साल पहले डॉ बैद पहली ओर आखरी बार विधायक बने। राजनीति की राह में बिछे कांटों को हटाकर नई राह बनाने के लिए कांग्रेस छोड़कर अब वे बीजेपी में आए हैं, और ये जो मिठाई खाते देख रहे हैं न, ये उसी खुशी के अवसर की है।
मिठाई खिला रहे विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ मूल रूप से सरदारशहर तहसील के गांव हरपालसर के निवासी हैं, लेकिन बीजेपी के बड़े नेता हैं। राठौड़ का राजनीतिक उदय 1990 में हुआ और वे पहली बार चूरू से विधायक चुने गए। सन 2003 में पहली बार बनी वसुंधरा सरकार में राजेंद्र राठौड़ जब पीडब्ल्यूडी महकमे के मंत्री बने और पहली बार विधायक चुनकर आए डॉ. चंद्रशेखर बैद विपक्ष के तेज-तर्रार नए नेताओं में से एक थे। उनके जोड़ीदार हुआ करते थे हिंडोली के कांग्रेसी विधायक हरिमोहन शर्मा। विधानसभा में सबसे ज्यादा सवाल यह दोनों ही उठाते और बहस में भी जोर-शोर से भाग लेते। बैद और हरिमोहन की अच्छी छनती थी और राजेंद्र राठौड़ से जोरदार ठनती थी। चूरू में भी उनकी गरमा गरम बहस जहां-तहां देखने को मिल जाती थी। सन 2008 में फिर चुनाव आए और इस बार राजेंद्र राठौड़ ने चूरू की बजाय चुनाव लड़ने के लिए तारानगर को चुना और डॉक्टर चंद्रशेखर बैद को इस चुनाव में हराकर एक लंबे राजनीतिक वनवास में भेज दिया। 2013 में राजेंद्र राठौड़ तो वापस अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र चूरू में आ गए लेकिन चंद्रशेखर बैद तारानगर में ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने उतरे मगर जयनारायण पूनिया के सामने चुनाव हार गए। 2018 में उन्होंने फिर कांग्रेस से दावेदारी की, लेकिन लगातार दो बार हारने के चक्कर में कांग्रेस ने पूर्व सांसद नरेंद्र बुडानिया को उम्मीदवार बना दिया और बैद ने बागी होकर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली।
अब, 2023 के इस चुनाव में राठौड़ फिर से चुनाव लड़ने तारानगर पहुंच गए हैं, तो डॉक्टर चंद्रशेखर बैद ने उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लिया है और बीजेपी में शामिल भी हो गए हैं। डॉक्टर चंद्रशेखर बैद ने बाकायदा इस संबंध में अपना एक आडियो वायरल करवाया और अपने पिता की पुरानी सीट सरदारशहर से भाग्य आजमाने के संकेत दिए। यही वो प्लास्टिक में लिपटीं हुई मिठाई है जो गले तब तक नहीं उतरेगी, जब तक बैद को सरदारशहर से बीजेपी का टिकट नहीं मिल जाता। यूं तो चंद्रशेखर डॉक्टर हैं। बैद सरनेम भी है और पन्नीचढ़ी मिठाई को पचाने का नुस्खा भी उनके पास होगा ही, लेकिन वे पसंद फिर भी मिठाई को पन्नी उतार कर ही खाना करेंगे। बैद ने राठौड़ को अपना नेता मान तो लिया है लेकिन कोई भी नेता, नेता तभी माना जाता है जब वह टिकट दिलवा दे। इसलिए, लिस्ट का इंतजार कीजिए और चूरू, तारानगर और सरदारशहर की यह अनूठी त्रिकोणीय प्रेम कहानी को देखते रहिए साथ ही राजनीति की रामकहानी में राठौड़ की मिठाई के स्वाद के मजे भी लेते रहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार अरविंद चोटिया अजकल चुनावी यात्रा पर हैं)