देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व करते हुए सोनिया गांधी ने देश, इसकी संस्कृति और यहां के लोगों को अपना बनाया है एवं वे स्वयं भी इसमें रच बस गई।
अशोक गहलोत
एक अलग देश और संस्कृति से ताल्लुक रखने वाली युवती के लिए एक ऐसे ऐतिहासिक परिवार में शादी करना आसान नहीं हो सकता था, जिसकी देश की आजादी में प्रमुख भूमिका रही थी। फिर भी सोनिया जी ने जिस देश में शादी की, उसकी संस्कृति को सहजता से अपनाया, समृद्ध किया। 31 अक्तूबर, 1984 को इंदिरा जी की मृत्यु और 21 मई, 1991 को राजीव जी की मृत्यु के बाद वे पूरी तरह से टूट गईं और कांग्रेसियों के आग्रह के बावजूद राजनीति में शामिल होने से इनकार कर दिया। पार्टी में नेतृत्व का संकट खड़ा होने के बाद ही वे कमान संभालने को तैयार हुईं।
यह कठिन निर्णय था, लेकिन एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कांग्रेस की अपरिहार्यता के एहसास ने उन्हें 6 अप्रैल, 1998 को आग्रह स्वीकार करने और कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मजबूर कर दिया। कांग्रेस 100 करोड़ के देश में से पार्टी का नेतृत्व करने में समर्थ एक भी भारतीय खोजने में सक्षम नहीं, कहकर पार्टी का उपहास किया गया, फिर भी सोनिया जी ने वह चुनौती स्वीकारी, जो वक्त की मांग थी। 2004 में यूपीए ने उनके नाम पर जनादेश पाया था, पर उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी डॉ. मनमोहन सिंह जी को सौंप दी।
बोलने के लिए शब्दों का उनका चुनाव मुझे आश्चर्यचकित और प्रभावित करता है। हर शब्द का श्रोताओं पर पडऩे वाले असर का वे बारीकी से आकलन करती हैं। वे भाषण पढ़ती हैं, पर उसकी सारी बात उनकी अपनी होती है। एक बार हम एक चुनाव अभियान पर एक हेलिकॉप्टर में थे और वे अपना भाषण तैयार कर रही थीं। अचानक उन्होंने मेरी ओर देखा और हिंदी में एक बेहतर शब्द बताने को कहा। मैं कुछ सोच पाता, उससे पहले उन्होंने खुद ही एक अच्छा पर्यायवाची बता दिया। इसी तरह मैंने उन्हें हमेशा इस बात की पूरी जानकारी मांगते देखा कि विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व कैसा होना चाहिए। पीसीसी प्रमुखों की नियुक्ति सहित किसी भी अहम निर्णय पर पहुंचने से पहले वे कार्यकर्ताओं, नेताओं और जनता की नब्ज टटोलती हैं। सोनिया जी को निजी और राजनैतिक सफर, दोनों में मुश्किल समय का सामना करना पड़ा है। हालांकि, हर बार उन्होंने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया है।
(लेखक राजस्थान के मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं)
(इंडिया टुडे से साभार सितंबर 2021)