-ज्योति मुणोत
पर्यावरण के बिना सृष्टि पर मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती तथा पर्यावरण ही हमारे जीवन का आधार है, इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित होने के बाद भी हम लोग पर्यावरण का संरक्षण करते हैं या उसको बढ़ाने के इंतजाम करते हैं, यह भी हम सब अच्छी तरह जानते हैं। पृथ्वी ऐसे अनेकानेक विपुल संसाधनों से सजी हुई है, कि हम सुखी रहें। मगर पिछले कुछ दशकों में समस्त विश्व सहित पूरे मारवाड़ का पर्यावरण का संतुलन ही पूरी तरह गड़बड़ा गया है। हमने अपने जीवन को ज्यादा सुविधाभोगी बनाने के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया, तो हमें कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं सहन करनी पड़ रही है। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र भूजल स्तर में लगातार गिरावट और हवा में कम होती नमी, ये सारे प्रकृति के अत्यंत दोहन के दुष्परिणाम हैं, जिसका आनेवाले वर्षों में भारी भुगतान करना पड़ सकता है।
प्रकृति हमारी मां है, मां हमारा ख्याल रखती है, तो हमें भी उसका ख्याल रखना ही चाहिए। इसी को जीवन का उद्देश्य मानकर जब पत्रकारिता में कदम रखा, तभी से पर्यावरण के क्षेत्र में मैंने काम करना शुरू किया। हमारे तीर्थस्थलों पर बड़ी बड़ी धर्मशालाएं, इमारतें तथा मंदिर आदि हम बना रहे हैं, तो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कदम बढ़ा रहे हैं। इस कार्य को हमें और तेज करना होगा, ताकि तीर्थस्थलों पर पवित्रता का वातावरण सदा रहे। मारवाड़ पर्यावरण संरक्षण समिति में हम कुछ महिलाओं ने वृक्षारोपण अभियान शुरू किया, तो मारवाड़ के जीरावला, वरकाणा, मुंबई में नाकोड़ा दर्शनधाम, मध्यप्रदेश में भोपावर तीर्थ आदि में कई वृक्ष लगाए। पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खराब शहर मुंबई की कई हाउसिंग सोसायटियों में भी हमने वृक्ष लगाने का अभियान शुरू किया, जो अब तेजी पकड़ने लगा है, तथा वहां के स्थानीय निवासी भी स्वयं ही पेड़ लगाकर हमें बताने लगे हैं, तो मन में खुशी होती है कि पर्यावरण के लिए हमारा अभियान रंग ला रहा है।
पर्यावरण व जल संरक्षण ये दोनों ही उद्देश्य गोड़वाड़ की भूमि को हरा-भरा और उपजाऊ बनाने की दिशा में सार्थकता से आगे बढ़ रहे हैं। स्वर्गीय किशोर खीमावत जी के जीवन से प्रेरणा लेकर हम लगातार काम कर रहे हैं, तथा गोड़वाड़ इलाके के कुछ गांवों के भरे हुए तालाब लोगों को प्रेरित करने के हमारे काम की सार्थकता हैं। मारवाड़ के गांवों में पर्यावरण तथा जल संरक्षण के लिए काम करने के दौरान समझ में आया कि उस क्षेत्र के खेती करनेवालों को समझ ही नहीं है कि उनके कुओं का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। सरकारी अधिकारियों से चर्चा करके इस समस्या को सुलझाने के प्रयास चल रहे हैं। जल संरक्षण के इस काम में हमें स्थानीय लोगों को भी साथ मिल रहा है। लोग हमारे काम को पहचानने लगे हैं तथा गांवों में पर्यावरण तथा जल संरक्षण के काम को लेकर जागरूकता आ रही है, यह सबसे बड़ी खुशी का विषय है।
पर्यावरण तथा जल संरक्षण के इस काम के दौरान कई लंबी लंबी यात्राएं करने तथा लोगों को जानने के मौके मिले, तो समझा कि मारवाड़ में बरसाती खेती खत्म होती जा रही है। कुओं व नहर से आने वाले पानी से जो खेती हो रही है, उसी पर लोगों की निर्भरता है। जल खत्म होने का कारण पृथ्वी का लगातार गर्म होते जाना है। आप जब भी मारवाड़ जाते होंगे, तो लगता होगा कि पिछले तीस साल में गर्मी हर साल बढ़ती ही जा रही है, तथा वहां पर हरियाली समाप्त हो रही है। इस कारण से अगले 50 सालों में तापमान 3.5 डिग्री बढ़ने की संभावना है, गर्मी में अधिकतम तापमान 52 डिग्री पर भी पहुंच सकता है। इससे जहां पानी है, वहां पानी बढ़ता जाएगा तथा जहां नहीं है, वहां पर समाप्त होता जाएगा। गर्मी से मारवाड़ क्षेत्र में कुए सूख जाएंगे, जलस्तर बेहद नीचे चला जाएगा, तो उधर ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से समुद्री जल का स्तर 3 मीटर तक बढ़ जाएगा। ऐसी स्थिति में कई द्वीप और देश पानी में सभा जाएंगे, मगर मारवाड़ के कुओं में पानी देखने को भी नहीं मिलेगा। पर्यावरण के ये संकेत बहुत ही खतरनाक हैं, विशेषतया मारवाड़ के लिए, जहां गत दो सदियों से जल की कमी सबसे बड़ी समस्या है। मारवाड़ में इस बार भी बारिश के मौसम में बारिश नहीं के बराबर हो रही है, और गर्मी पड़ने लगी है। मारवाड़ की कृषि आधारित ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के लिए ये सबसे ज्यादा खतरनाक संकेत हैं। मारवाड़ का इलाका तो पूरी तरह कृषि प्रधान जनजीवन वाला है। मगर अब इस पर खतरा स्पष्ट नजर आ रहा है। इसलिए मारवाड़ के पर्यावरण को बचाना बेहद जरूरी है।
(लेखिका गोड़वाड़ के पर्यावरण संरक्षण क्षेत्र में सक्रिय हैं)